श्री श्रीसद्गुरूसग्ड | Shri Shrisadhrusang

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Shri Shrisadhrusang  by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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् १२ रो्ीसद्ुससङ्न (१ किव वसद समम सकेंगे) गर्भवती लियों जिस अ्रकार भले ररी से नियम फी रत्ताकएती हु दस मदीने फे बाद सन्तान कौ उलन उसी तरह बहुत दिनों लक इन स्थानों में रहना चाहिए। कम से की রি वर्ष तक नियमाशुसार रहने से धाम के अ्रभाव का छुछ पता लग জানা ই मैं तो यह सव हवं जानवा नदौ था । परमर्हसजी की श्राक्षा से इ समय तक यहाँ रहने से ही अर दिन पर दिन स्थान फा श्द्त मादास्य देषः दरदो रदा हं। नियम से खूब साधन करो--बहुत জাম হীনা। হব থান का विचित्र प्रभाव है।” मैंने पूछा-- गर्म घारण करके तन्दुक्त्त शरीर से হন ঘং दस महीने ॐ मराद जिस प्रकार सन्तान उत्पन्न होती है उसी प्रकार तीर्थ के বিষম षी पालन रीति से करके बहुत समय तक तीयथ॑ में वास करने पर क्या पाी्देवता दी पुनम प्रकट ते ६! कुर ने क-पररप फी बात नहीं दै ; वे पते रूपमे दी भकड ते । मारण फी सर नियम धारण करे तिर्थवाक् कदे तवर तो * बरह्मचारी जी का खेद গীত আলিম ঘাব यायेद्‌) के बद्ाचारीजी के श्रकस्मात्‌ शरीर छोड़ने बी खबर सुने से ঘা না গা ইক্সো। উনি गीलामीनी ्े पृदा--्रस्चारीनी तो मदतेये कि श्रीर्‌ मी सौ নথ বক रहेंगे। उन्होंने इतनी जल्दी शरीर वैसे छोड़ दिया;! 'क्सि धीमारी से उनकी छत हुई गोम्पामीजी-- मद्दापुरपो की कही सत्यु होती है ? सेग~-वद भी ए दिफ़ाने के लिए ! उन्द्वाने तो अपनी सुशी से शरीर छोड़ा है। कद्दा--भत्र রন रहने फी कुछ आवश्यकता नहीं ই । उनके रदने से टलदा चीरं फा ভুল হীগা। ने कायन) पुश छे उन्न शरोर फो क्पो टो दपा! शयेर धन ते परदे कमा उन्दने श्रारे कुछ মহা যা? गोस्वामी भी--दाँ, बुत छुद कट्दा था। लिस दिन उन्दीने शरीए घोदी दे उसमे पहले पी रात भर ये यही पर थे। सारे रात इनके साथ मेरा भंगदा हवा रद्दा | मुम्से भ्रस्यार निद फरफे कदरे सो ~-^तू जाकर मेरे चासन प




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