जिनवाणी : अंक 5, 6, 7 | Jinvani : Ank 5,6,7,
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महान् उपकारी आचार्य হল !
`` [¬] श्राचायं धी हीराचन्द्रजी म. सा.
सिद्धि को लक्ष्य बनाकर साधना मार्ग में चरण बढ़ाने वाले आदशे साधक
आचार्य भगवन्त के साधनामय जीवन को लेकर विद्वातजन अपना-अपना चिन्तन
प्रस्तुत कर रहे हैं। अहिसा, सत्य, शील, ध्यान, मौन, संयम-साधना आदि गुणों
को श्रमेकानेक रूप में रखा जा रहा है। विद्वत् संगोष्ठी के माध्यम से आपके
समक्ष कई विदानो ने चिन्तन-मनन, श्रध्ययन-ग्रनुसंधान कर अपने-अपने शोध-
पत्र प्रस्तुत. किये है । | $
आचाये भगवन्त की वाणी में ओज, हृदय में पवित्रता तथा साधना में
उत्कर्ष था । उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना. नयनाभिराम था उससे भी कई गुना
अधिक उनका जीवन मनोभिराम था । गुरुदेव की भव्य आक्ृति में देह भले ही
छोटी रही हो पर उनका दीप्तिमान निर्मल श्याम वर्ण, प्रशस्त भाल, उन्नत
सिर, तेजपूर्ण शान्त मुख-मुद्रा, प्रेम-पीयूप बरसाते दिव्य नेत्र, 'दया पालो' का
इशारा करते कर-कमल । इस प्रभावी व्यक्तित्व से हर आगत मुग्ध हुए बिना
नही रहता था 1 ,
उनके जीवन मे सागर सौ गम्भीरता, चन्र सी शीतलता, सूयं सी तेज-
स्विता ओर पवेत सी श्रडोलता का सामंजस्य था । उनकी ` वाणी की मधुरता,
विचारों की महानता और व्यवहार की सरलता छिपाये नही छिपती थी ।
उनकी विशिष्ट संयम-साधना अद्वितीय थी । |
विह्ृदूजनों ने आचार्य भगवन्त की साहित्य-सेवा के सन्दर्भ में अपना
चिन्तन प्रस्तुत किया । वस्तुत: आचार्य भगवन्त की साहित्य-सेवा अनूठी थी ।
कविता की गंगा, कथा की यमुना और शास्त्र के सूत्रों की सरस्वती का उनके
साहित्य में श्र व
य मभ्रद्भुत संगम था । आचाय भगवन् की कतियों मे वाल्मीकिं का
सौन्दर्य, कालिदास की प्रेषणीयता, भवभूति कौ करुणा, तुलसीदास का प्रवाह,
भुरदास् की मधुरता, दिनकर की वीरता, गुप्तजी की सरलता का संगम था ।
शास्त्रों क टीकाएँ, जैन धमं का मौलिक इतिहास, प्रवचन-संग्रह तथा शिक्षाप्रद
` जोधपुर मे आयोजित विदधत संगोष्ठी मे १७-१०-६१ को दिये गये प्रवचन से
श्री तौरतन मेहता द्वारा सकलित-सम्पादित अंश ।
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