जिनवाणी : अंक 5, 6, 7 | Jinvani : Ank 5,6,7,

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महान्‌ उपकारी आचार्य হল ! `` [¬] श्राचायं धी हीराचन्द्रजी म. सा. सिद्धि को लक्ष्य बनाकर साधना मार्ग में चरण बढ़ाने वाले आदशे साधक आचार्य भगवन्त के साधनामय जीवन को लेकर विद्वातजन अपना-अपना चिन्तन प्रस्तुत कर रहे हैं। अहिसा, सत्य, शील, ध्यान, मौन, संयम-साधना आदि गुणों को श्रमेकानेक रूप में रखा जा रहा है। विद्वत्‌ संगोष्ठी के माध्यम से आपके समक्ष कई विदानो ने चिन्तन-मनन, श्रध्ययन-ग्रनुसंधान कर अपने-अपने शोध- पत्र प्रस्तुत. किये है । | $ आचाये भगवन्त की वाणी में ओज, हृदय में पवित्रता तथा साधना में उत्कर्ष था । उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना. नयनाभिराम था उससे भी कई गुना अधिक उनका जीवन मनोभिराम था । गुरुदेव की भव्य आक्ृति में देह भले ही छोटी रही हो पर उनका दीप्तिमान निर्मल श्याम वर्ण, प्रशस्त भाल, उन्नत सिर, तेजपूर्ण शान्त मुख-मुद्रा, प्रेम-पीयूप बरसाते दिव्य नेत्र, 'दया पालो' का इशारा करते कर-कमल । इस प्रभावी व्यक्तित्व से हर आगत मुग्ध हुए बिना नही रहता था 1 , उनके जीवन मे सागर सौ गम्भीरता, चन्र सी शीतलता, सूयं सी तेज- स्विता ओर पवेत सी श्रडोलता का सामंजस्य था । उनकी ` वाणी की मधुरता, विचारों की महानता और व्यवहार की सरलता छिपाये नही छिपती थी । उनकी विशिष्ट संयम-साधना अद्वितीय थी । | विह्ृदूजनों ने आचार्य भगवन्त की साहित्य-सेवा के सन्दर्भ में अपना चिन्तन प्रस्तुत किया । वस्तुत: आचार्य भगवन्त की साहित्य-सेवा अनूठी थी । कविता की गंगा, कथा की यमुना और शास्त्र के सूत्रों की सरस्वती का उनके साहित्य में श्र व य मभ्रद्भुत संगम था । आचाय भगवन्‌ की कतियों मे वाल्मीकिं का सौन्दर्य, कालिदास की प्रेषणीयता, भवभूति कौ करुणा, तुलसीदास का प्रवाह, भुरदास्‌ की मधुरता, दिनकर की वीरता, गुप्तजी की सरलता का संगम था । शास्त्रों क टीकाएँ, जैन धमं का मौलिक इतिहास, प्रवचन-संग्रह तथा शिक्षाप्रद ` जोधपुर मे आयोजित विदधत संगोष्ठी मे १७-१०-६१ को दिये गये प्रवचन से श्री तौरतन मेहता द्वारा सकलित-सम्पादित अंश ।




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