माणिभद्र : पुष्प - 39 | Manibhadra : Pushpa-39
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोतीलाल भड़कतिया - Motilal Bhadaktiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)/
শিলা হা হা “(जिन ख्दज्ट ভিজ হেত ৪
विशाल सागर को अनेक नामों से पुकारा
जाता है जिसमें एक नाम रत्नाकर भी है। सागर के
तल में विविध रत्न पडे हैं अतः इसका रत्नाकर
नाम भी सार्थक है | लेकिन सागर में रहे रत्न
जिसको पाने है उसको सागर की गहराई में जाना
पडता है । जो गहरे पानी में गोता लगाता है उसके
ही हाथ में रत्न चढ़ते है । जो गहराई में जाने के
परिश्रम से डरकर किनारे पर ही खडा रह जाता है
उसे तो सिर्फ शंख व छीपले ही हाथ चढते है ।
अतः कवि ने ठीक ही कहा है कि--
^“जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पेठ
बोरी दढन मै गई, रही किनारे बैठे“
आध्यात्मिक जगत में भी यही बात लागू
पडती है । जिन्होने आत्मिक सुख व शाश्वत शाति
पाने का लक्ष्य बाधा उन्होने भीतर मे खोजना शुरू
किया | बाहर से दृष्टि बंद करके भीतर दृष्टि लगाई ।
गहराई मे गोता लगाया ओर एक दिन चैतन्य मूर्ति
ज्ञानानदमय भगवान आत्मा का साक्षात्कार किया |
महात्मा आनंदघन जी ने अजितनाथ प्रभु
की स्तवना करते लिखा...
“चरम नयण करी मारग जोवतोरे, भूल्यों
सयल संसार
--मुनिराज श्री पुण्यरत्नचन्द्र जी म.सा., जयपुर
जेणे नयणे करी मारग जोईये रे, नयण ते
दिव्य विचार
बाहर की चर्म दृष्टि से देखता हुआ सारा
संसार भटक गया है | जिस दृष्टि से सच्चामार्ग
दिखता है उसको दिव्य नयन की संज्ञा दी है।
श्रीमद् राजचन्द्र जी ने आत्मसिद्धिजी में
लिखा-
एक होय तीन काल में परमारथ को पंथ“
भूतकाल मे भी यही मार्ग था, वर्तमान मेँ
भी यही मार्ग है ओर भावी में भी यही मार्ग रहेगा |
जिसको सच्चिदानंद भगवान आत्मा को पाना है
ढूंढना है खोजना है उसको अंतर की गहराई में
डूबकी लगानी होगी | विभाव से हटकर स्व-
स्वभाव मे आना पडेगा |
प्राणी मात्र की चाहना है मुझे सुख मिल
जाय मेरे दुःख मिट जाय । किन्तु शांति चाहते हुए
भी शाति को नही पा रहा है | क्योकि बाहर के
साधनों में सुख नहीं वह न तो सिर्फ दुःख को कुछ
समय के लिये दूर हटा सकते है । आज आदमी
सुख की चाह में बडे बडे साधनों से सज्ज होता
चला आ रहा है | अलग-अलग सेटो से सज्ज हो
रहा है जैसा कि सोफासेट, डीनर सेट, टी. वी.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...