श्रीरामकृष्ण परमहंस के सदुप्देश | Shreeramkrishan Paramhans Ke Sadupades
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पंडित शिव सही चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले के देवरी नामक गांव में हुआ था | इन्होने कई पुस्तकें लिखीं किन्तु समय के साथ साथ उनमें से कुछ विलुप्त हो गयीं | ये एक अमीर घराने से थे और बचपन से ही कला में रूचि रखते थे |
इनके वंशज आज जबलपुर जिले में रहते हैं और शायद ये भी नहीं जानते कि उनके दादाजी एक अच्छे और प्रसिद्ध लेखक थे | इनके पौत्र डॉ. प्रियांक चतुर्वेदी HIG 5 शिवनगर दमोहनाका जबलपुर में निवास करते हैं |
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जौवोंकी अवस्थाम भेद । १९
ईश्वरको आराधना तो करते हैं,किन्तु जब उन्हें कामिनो-काञन
को सुधिश्राजातौ है, तव वै हरिकौतेन को छोड़ कर उसी
मरन हो जाते हैं ।
४-बडजोव न तो खतः हो इरिनाम सुनते हैं और न
दूसरों को हो सुनने देते हैं। वे धर्म और धार्मिकोंको निन्दा
करते हैं; और यदि कोई भजन-पूजन करता है, तो वे उसको
हँसो उड़ाते हैं ।
५--कछूएको परोठ पर तलवार मारो, वो वलवार कौ धार
भले हो नष्ट हो जाय, पर कछुए पर कुछ असर नहीं होता, इसो
प्रकार वदजोवों को कितनाही धर्म वा नोतिका उपदेश दो, पर
उन पर उसका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता ।
६--सूर्वकी किरणें सब जगह समान पड़ती हैं; किन्तु
पानौ, कांच श्रौर खच्छ पदार्थीमें उनका अधिक प्रकाश
दिखाई देता है। इसो प्रकार परमेश्वरका अंश सब जोवोंमें
समान रूपसे व्याप्त रहनेपर भो, साघु एुरुषोभे उसका विशेष
प्रकाश दिखाई देता है ।
७--संसारो मनुष्य उस तोतेंके समान हैं, जो सदेव “राधे-
कृष्ण राधिक्ष्ण” रटा करता है; परन्तु जब उसे विलो पकड़ी.
है, तब टेटेंके सिवा उससे कुछ कहते नहीं बनता। इसौः
प्रकार संसारी मनुष्य सुख-शान्तिके समय धर्मकर्म और पर-
भेश्वरकों चर्चा किया करते हैं ; किन्तु विपत्तिके समय उनसे
कुछ नहीं बन पड़ता ।
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