समय और हम | Samay Aur Ham

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= भमान घोदनपातय एह दु थी प्रोर তাহ লতি एपोद्रूघात प्रस्तुत प्रत्य कौ इस सप और आकार में पाकर मै सुर आश्चर्य द कर शकता हूँ। कारण १७ रतपरी १९६१ की प्रात अब मैं अपत्ती बिज्ञाता--हपप्ट অল লহী লে অন্ত के अस्पप्ट बाप--कौ केकर भदेय यैनेद्रयी ङे पाम पुना था, तब ती पैन वल्पता भी नही कौ थी कि मैं इस गह्ो दौस रहो परे ४६ प्रष्त बृह भाऊंगा जिनके उत्तर इस जिस्तृत्त पत्थ कौ बोस्यदा तक कंक यापने | प्रस्थारम्म क्यों-रेसे ? আিক্সান্া ध्ौकिया जौर मतोौरजत कौ इच्छा से प्रेणित भौ हो तकती है। पर ओतौ जिश्ञासा ऐसी प्रेरणाओं कौ सृष्टि हड्डी बी। कमौकमौ जौर विप्लेपकर शौवन जौर अपत्‌ गी धम्बद्ध अगवा अरुम्बद किसी एक अपडा लतेक बटतामो है कौशित बत हो जाते पर, ऐसा होता ६ कि जैसे ध्वक्ति का पू्षे ध्यकितत्थ एक भन्‌ अमूजरे भूरे दे ष्र्‌ उखः हो! दष राट्‌ नौ सूप्तौ । आरम-भिरवाह शिनि जाया ई। व्यक्ति दौत प्रशोन अबरूद और शृद्ध अगुमभ कएएा हैं। पहस गौ ही मोस्थताएँ बरद्ौत बसशों प्रो तरह उपहास-उा करता भेल्तौ ई शौर तैर कर जपे दिकछ जाती है। तब आरश्यक হী জালা ছু কি ফিযী ভষম জাপান है हामते अपने हृदग को उंजेझा चाप গীত ওক অন্ত श्रारवासत ते अपतोी आए्गा को पून' सचेत और छतेग किस जाग। सत्‌ ६ ढा अग्तिग भाप मेरे জিত पुछ ऐसा हो विपद्‌ और परौध्मा का बाख़ था। मत बेहर अआज्ोड़ित वा और मुझे एबर, परम्पया शौति बौर प्रीति सब पर एक बश बहुत बड़ा प्रस्त-विह्ठ क्षत्रा दौश्षता था! मेरी भास्तिकता मैरे हवाषा से छूटी थाती बौ और पह मृझे पक्ष कहीं हो रहा था। ये बहुद उदास और विप्त था। मैरी पौमित तुच्छ-बुद्धि अन्दर की भुटत और उमझ् को सेरने और सोचने मे स्वर्य कौ एकशम असमर्थ पातौ जौ। अध्ययत উ বল বিলী युश्ते लरजि ही बयौ बी । शत्प सौ है कि मत कौ ऐसी अपस्ना ঈ बहुपा हजारो रह॒स्‍्पभरी कविताएँ, पैकशो कछात्मक कहानियाँ और बस्ियी शये डपन्पास भौ বন काम नही कर पहले, चलो शह्दानुयूटियूर्ण बुस्चत के शो दैम शाप कर छाले हैं। अन्‍्थु डॉ रणबौरअल्क राइ| हारा আমীজিত্ত ক্ষে পাছত अचारक मुझे बैतेशजो कै बर्धण हो भपे। गड्ँ कौ चर्चा प्र सुद्धे हना कि क्यों त ये चंबेशजी के बमश हो ल्थप कौ चो्। छागद इत्हौके बचनों ते




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