बस्ती का बेटा | Basti Ka Beta
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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खवर सदन का चित्र जयदेव के साप्ताहिक पत्र 'बात' का धनी! में छुपा
था। चित्र छापने और उस पर फीचर लिखने के लिए जयदेव ने काला से ढाई
सौ रुपये लिये थे। कुल्लो का चहेता राजा पढाई लिखाई के बाद मव जयदेव
मिश्र के रूप मे जाना जाता था । यो नगर ঈ पढ़े लिखे लोगों की कमी नही है,
किन्तु जयदेव का दो वर्ण का अज्ञात वास उसे एक रहस्यमयी गरिमा से
मंडित किये हुए था। फिर जयदेव ने नौकरी के लिये हाथ पैर न फेककर्
सीधे हो अख़बार निकाछना शुरू किया, वो जयदेव की विशिष्टता में और वृद्धि
₹ই।
उस दिन जब वाबूजी अबला सदन में प्रविष्ट हुए, तो पाची मौका
ताड़ कर गेट से बाहर हो गई । पीली साड़ी आश्रम की कन्याओं कौ पहचान
थी। एक पीली साडी वाली कन्या को आश्रम से भागते देखकर जयदेव उसके
सामने आ गया।
“सको |”
पाची स्क गई 1 उसके मुख पर भय न था, वेसन्री थौ । बोली আন হী
मुझे 17
“क्यो १” जयदेव ने पूछा । “तुम अबछा सदन में रहती हो ?”
“देखो, मै भब॒छा सदन के बाहर हू'। अब इसी मिनट से मैने अवला'
सदन छोड़ दिया है 1”
“इसी मिनट' सुनकर जयदेव चौका । पूछा, “ऐसी क्या वात हुई 7
पांची ने अपना असंतोष तो व्यक्त किया, किन्तु बात नहीं बताई। वह
यही कहती रही कि आश्रम नही छोटेगी और जो आश्रम में रहकर उसे करना
पड़ता है, चही करना हो तो वह “शले याम शहर की छाती पर मूग
হউনী 1৮ हु
यस्ती का बेटा : 11
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