जनसेवक स्वामी गोपालदास जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व | Jansevak Swami Gopaldas Ji Ka Vyaktitva Aevam Kratitva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के अवत्मोकनत्थं स्वयं चूरू হাত सपव सूक লাল गगा्रनाद जौ, नशर-श्नी देखकर हे बा संतोप प्रकट आप आर्‌ उन्होने सस्या के कायं ओर प्रगति कौ देखं किया। जब वे चरू चित्र-दर्शन का अवलोकन कर रहे थे तब उसकी दष्टि कक्ष मे सज हुए स्वामी गोयारूदास जी के पत्चों पर रुके गई । उन्होंने मझसे कहा कि स्वामीजी का जीवन-चरित्र तो स्वतंत्र रूप से ही' प्रकाशित किया जाए तो अधिक अच्छा हो । वृधिया जी ने तो मानो मेर ही मन की बात कह दी, मैंने इसे घुरनत स्वीकार कर लिया, इस पर बुधिया जी ने ही सर्वप्रथम ग्रंथ को तैयार करने हेतु कुछ आशिक सहयोग की भी व्यवस्था कर दी | अव स्वामीजी के जीवन-चरित्र को तेयार करने का कार्य विद्येंष रूप से हाथ में लिया गया । सैकड़ों न्यक्तियों के पास इस सम्बन्ध की अपील डाक हारा भिजवाई गई व अनेकों व्यक्तिगत पत्र लिखें गये और अनेक सज्जनों से सम्पर्क साध गया । जयपुर, भादरा, बीकानेर व अन्य कई गि पड । फरस्वर्ूप स्वाथी जी से सम्बन्धित अनेक पत्र व अन्य सामग्री का संकलन हो सका । स्वामी जी के पुराने साथियों में से श्री बालूचन्द जी मोदी के पास गिरीडीह विश्येष आशा से गया । यद्यपि चूरू का नाम सुनते ही उनके भुंहपरनतया तेज आ गया, लेकिन एक रूम्बी बीमारी के कारण उनकी स्मृत्ति छुप्तप्राय हो सकी थी अतः आशीर्वाद के अतिरिक्त विशेष कोई जानकारी उनसे नहीं मिल सकी । स्वामी जी के अन्य साथियों में से स्वासी नूृसिहदेव जी सरस्वती, वैद्य शान्त शर्मा जी और महंत गणपतिदास जी आदि से कुछ जवानी जानकारियों प्राप्त हुई \ वंद्य सान्तर मा जी ने इस कार्य में घिशेष दिलचस्पी ली और बराबर हम जगहों पर जाना




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