नयी तालीम | Nayi Talim

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Nayi Talim by काशिनाथ त्रिवेदी - Kashinath Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर मैं ती बालव वो नहाने और उसके बालो कयौ करने का काम एक भारी घटना का रूप छे छेता है । बालक कितने रुद़ते-रिसाते, दोड दोडव र दूर भागते और छुकते छिपते रहते हैं । लेकिन, यहाँ तो बालक बाल- शिक्षिका के पास हँसते खेलते माते है, खुशी-खुनी नहाते हैं और मस्त होवर बालो में कधी करवाते हैं । इसमें बाल-शिक्षिका की अपनी कोई জী £, জী बह यही है कि बालक जिन कामो को स्वय करने को इच्छा प्रकट करते हैं, उन्हें वह उनको खुद करने देती है । नहाते समय उन्हें अपने ही हाथा छोटा उठाकर बदन पर पानी डालने देती है, उन्हें अपने हाथो अपना बंदन मलने देती है, बोचु-बीच में वह उन्हें सिखाती भी जाती है और जो काम बालकों से दो नहीं सकते, उन्हें यह खुद करतो भी जाती हैं 1 वाल-शिक्षिका की दूसरी खूबी यह है. कि वह इस बात की सावधानी रखती है कि बालकों को दुखन हो, तकलीफ न हो। नहाते समय उनके शरीर को धक्के न लगें, उनकी आँखों में साबुन का पानी न जाय, बाद़ों में कधी बरते समय बाल खिंच न जायें और जहाँ खींचना अनिवार्य हो बहौ मीठे शब्दों से बालक के मने षो उतना कष्ट सदने कर लेने के छिए तैयार किया जाय, वार-िक्षका इने सब वातो मेँ वदी सावधानी बरवती है + महल्ले के बड़े बालक सफाई के अछाबे खेल-कूद में पूरी मदद करते है । शिक्षिका को उन्हें सूचनाएं देसे की जरूरत नहीं पडतो 1 मानो किसो रूस्वे प्रशिक्षण दारा दे वाल-शिक्षा-सम्बन्धी सारे नियम सीख चुके हो, ऐसे ढग से ये नम्हें बाऊुको फो बडे प्रेम और घीरज के साथ खेलाते हैं, उनके हाथों में कूछे को रस्सी थमाकर उन्हें छुछावे हैं, सीडियो पर चड़ाकर फिसलनी पर से फिसलाते है, उनवी आँखों पर पट्टी बॉघकर उत्हें आवाज पहुचानना सिसाते हैं, गाय और ग्वाले के, और इसी तरह के दूसरे नाटको के खेल खेलाने हैं । सफाई-काम ओर खेल-कुद के वाद थके हए बालकों कैः लिए आँगनवाडो का तीसरा कार्यक्रम यही ही सकता है हि उहे किसी-न किसी चौज वा नाश्ता १९] कराया जाय । बारुव बैसे दात होकर बैठ जाते है। मुँह में पानी आने लगता हैं और परोसे हुए नाश्ते वो खाने वी इच्छा हो जाती है, फिर भी बालक समझदार को तरह बैठे रहते है और देखा बरते हैं॥ वाछ॒वाडी की उम्र से छोटो उमर के कुछ वालक भो अपने ক माई-बहनो की कमर प्र बैठकर षां आये होते है, वे तो थाली में परोसी गई चीज को देखते ही उसे मुँह में रखने रगते ह । सन जानते-समझते हैं कि वे तो यही कर सकते हैं । बालवाडी की उम्नवाकले बारूक उन्हें खाने देते हैं, अपने हाथ से उनके मुँह में कौर भी देते र्द्ते दै, पर सुद सवम का पालन करते द 1 वें जानते हैं कि थे बालक छोटे हैं और हम बडे हैं ॥ चकि काम वाको का है, इसलिए उभे बालिति और बारूकथाएँ तो होगी ही) जैसेन्जैसे बालकों का खवप वदृ पमप्येणः, उनकए कत्व सिटरः; सपण, वैसे-बैसे कार्यक्रमों में उनकी रुचि भी बढ़ती जायेगी । जी भो बहन या भाई अपना काम धन्धा करते हए सुबह मा ध्याम को घढे-दो घटो की फुरसत निकाल सकें, जिनके दिलों में अपना थोड़ा-सा समय वबालूनसेवा को समपित करके अपना भव बहलाने की झोर साथ ही राष्ट्र को शिक्षा के काम में अपना अल्प सा योगदान देने की मावना हो, अपने अनुभव के आधार पर हम उन्हें यह विश्वास दिलाते हैं वि बालक और उनके माता-पिता सेवा के इस क्षेत्र में उनका पूरा-पूरा स्वागत करेंगे । कहा जाता है कि कुछ दिनो के तप के परिणाम स्वरूप श्री रृष्ण ने नरसिंह मेहता को रासछीला के दर्शन कराये थे । यहू तो एक दस्तकथा है, लेकिन जहाँ- तहाँ बाल-सेवक या बाल-सेविकाएँ प्रेम-पूर्वक आंगनवाडियाँ चलानं के लिए निकछी है, वहाँ-वहाँ वाल-देवो ने और उनके माता-पिताओं ने रासलीक्ा से भो अधिक सुन्दर स्वरूप म उनको ददान दिये है । अछप अलग परित्पितियों में अनेक सदिकाआ ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव सभाव रूप - से क्या है। [ भयौ ताशीम




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