भगवान् महावीर एक अनुशीलन | Bhagwan Mahavir Ek Anushilan
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
922
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दखते हैं, उन्हें मगवान के जीवन की पूर्ण छवि के दशन नही हो सकते । मैंने इतिहास
पुराण और अन्य सामग्री के आधार से प्रस्तुत ग्रन्थ तँयार किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ
श्रमण भगवान महावीर परर णोध प्रवन्ध लिखने का विचार मेरे अन्तर्मानस
मे सत् १६६५ मे जगा था। मैंने उसी समय लिखना प्रारम्भ किया । तीनमौ पृष्ट
लिखने पर भी मुझे आत्म-सत्तोप नही हुआ । ऐसा अनुभव हुआ कि जैसा चाहिए
वैसा मैं नही लिख पाया हू । यदि पाँच-दस ग्रन्थो के आधार से ग्रन्थ लिखकर पूर्ण
भी कर दिया गया, तो उसकी अपूर्णता सदा मन मे खटफती रहेगी अत महावीर
पर जो आगे लिखना था, उसको स्यगित कर प्राचीन और अर्वाचीन ग्रन्थों का
अध्ययन प7रने लगा। यह सत्य है कि अध्ययन के साथ ही कल्पसूज पर विवेचन,
'ऋषपभदेव एक परिशीलन', “भगवान पाश्व एक समीक्षात्मक अध्ययन! “भगवान
अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण,” 'घर्मं और दर्शन', साहित्य गौर सस्कृति आदि
शोध प्रधान ग्रन्थ लिसे । आचाये हस्तीमल जी महाराज की प्रबल प्रेरणा से जैन
घर्मं के मोलिक इतिहास' का सम्पादन व लेखन भी किया ॥ चिन्तन प्रधान व कहानी
तथा रूपक साहित्य भी लिखा ।
सन् १६५८२ मे श्रमण सधीय राजस्थान प्रान्तीय सन्त-सम्मेलन साण्डेराव
(राजस्थान) मे हुभा } परम श्रद्ध य सद॒गुरुवर्य को शिप्य समुदाय सहित कादावाडी
बम्वई का शानदार वर्पावास पूर्णं कर उममे उपस्थित होना पडा 1 सन्त सम्मेलन ने
सर्वानुमति से प्रस्ताव पारित कर मुझे महावीर पर शोघ प्रबन्ध लिखने के लिए कहा,
मैने प्रस्ताव को सहपे स्वीकार कर लिया | पूज्य ग्रुरुवयें का १९७२ का অনানাজ
जोधपुर था । वर्षावाल मे महावीर पर पुन नवीन रूप से लेखन प्रारभ किया ।
लिखने के पूच मन में यह कल्पना थी कि वर्पावास मे ही गन््य पूण हो जायेगा।
सध्यान्ह में बारह से चार तक मौन रखकर महावीर पर लिखता और पढता रहा,
पर अथ का एक विभाग भी पूण नहीं हो सका, तीन विभाग अवशेप रह गये ।
वर्षावास के पश्चात् कुछ समय तक जोधपुर के उपनगरो मे रहकर महावीर ग्रन्थ को
पूर्ण करने का मैने प्रयास किया, परन्तु वह यूण नहीं हो सका, विहार मे भी जब
समय मिला महावीर पर लिखता रहा। सन् १६७३ का वर्षावास अजमेर हुआ 1
चार भाह तक महावीर पर काये चलता रहा, और वर्षावास के पश्चात् भी अहमदा-
बाद तक । लगभग तीन वषं प्रस्तुत भ्रन्थ के लेखन मे लगे है और दस वपे महावीर
सम्बन्धी साहित्य के अध्ययन मे । जितने ग्रन्थो का उपयोग प्रस्तुत ग्रथमे हुआ है
उससे भी बहुत अधिक श्रन्थ मुझे पढने पडे है । मैने अत्यन्त तन्मयता ओर श्वद्धा
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