संतसाहित्य - ग्रंथमाला | sant saahitya granthmaala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
671
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)«হম नदटण्दाज का यन्ता व १५
उचित समझा | नरेना-नरेश श्री नारायणपसिह दक्षिण में थे । उसके मन में
भी यह फुरणा हुई कि महाराज को नरेना लाकर सत्सग करना चाहिये ।
उसने महाराज को बुलाया। महाराज तीन दिन श्रीरघुनाथम-दर में
रहे, फिर ७ दिन त्रिषोलिया (तालाव पर बने स्थान) पर गहे । वहां राजा
प्रतिदिन सत्संग करने जाते थे । आठवें दिन महाराज के आसन के पास एक
सं प्रकट हुआ -सने अपने फन से तोन वार वहाँ मे उठने का सकेत
किया | महाराज भगवान् की आज्ञा मानकर, उसके पोछे-पीछे चल पड़े ।
कुछ दर आए एक सेजड़ के वृक्ष के नीचे जाकर सर्प ने फन से वहाँ विराजने
का संकेत किया ) महा राज वहाँ विराज यये )
वहाँ तालाब के तट और वाग-के बीच एक मास में घाम तैयार हो
गया। फिर एक दिन वहाँ भूत काल में हुए कई प्रसिद्ध सन्त पघारे ओर
रात्रि भर ब्रह्म-विचार होता रहा। प्रातः टीलाजो ने पूछा--“भगवन् !
रात्रि में बाहर से तो कोई आया नहीं, फिर भी राजिभर आपके पास कई
महानुभावों के शब्द सुनायी दे रहे थे, क्या बात थी ?” महाराज ने कहा--
“भूत काल में हुए संत आकाझमार्ग से व्रह्मविचारहेतु आये थे और आकाश-
मार्ग से ही वापस चले गये ।””
अन्त में, स्वामी गरीवदास जी ने प्रश्न किंया--“स्वाभिन् ! आपने
ऐसा भागे दिखाया है जो हिन्दू-मुमलमानों की संकीण्ण मर्यादा से ऊपर का
है, किन्तु इसका जागे कंसे निर्वाह होगा” ? महाराज ने कहा--“तुम ऐसा
विचार मत करो । जो अपने धर्म में रहेंगे, उनकी रक्षा राम करेंगे । तुम
ओर विशेष चाहो तो हमारा शरीर रख लो । जो भी पूछना चाहोगे उसका
उत्तर इससे मिलता रहेगा | ऐसा न समझो कि यह शरीर खराब हो जायेगा
क्योंकि यह पंचतत्त्व से बना हुआ नहीं है । अपितु यह् दर्पण में प्रतिविम्वित
शरीर के समान हैं। यदि तुम्हें संशय हो तों हाथ फेर कर देख তী।'ঃ
स्वामी श्री गरीबदास जी ने हाथ फेरा तो शरीर दीपक ज्योति सा प्रतीत
हुआ । वह दीखता तो था, किन्तु पकड़ में नहीं आता था। फिर स्वामी श्री
गरीबदास जी ने कहा - जब आपने ऐसा देह वना लिया तो कुछ दिन इसे
ओर रखने की कृपा करें ।” महाराज बोलके--“हरि आज्ञा नहीं है ।” स्गमी
गरीबदास जो ने कहा-- झरीर के रखने से तो हम शव-पूजक कहलायेंगे
और आपके उपदेश के झनुसार यह उचित नही है ।'” महाराज बोले--“ततो
फिर यहाँ एक विना तेल घृत ओर वत्तौ के अखण्ड ज्योति रहेगी, उससे
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Jitendra Mahawar
at 2024-04-19 06:03:07