राजीयाबेगम | Rajeeya Begam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द् रज़ायाबेंगम | . (दूसरा है पल तप जे ताजा अर भा जप पीपल जाप, भला सभा सब ताला च . न की द्ढ़े (दूसरा परिच्छेद (1 शाही शौक ” कोई फ़िट्नः बरपा हुआ चाहता है। खुदाजाने अब क्या हुआ चाहता,हैं ॥ ख़बर हे तुम्हे, क्या हुआ चाहता है । तमाम आज किस्सा हुआ चाहता है |” 5 के अन्दर, ' ज़मुर्दद मद ' के सामने बड़े छंबे चौड़े सा कि न मैदान में पशुयुद्ध और मल्लक्रीड़ा के लिये बहुतही खुह्दा- नी रंगसूमि बनाई गई है। एक ओर तो ' ज़मुरद डे मददल * की बारद्ददरी खूब ही सजी गई है और तीन गर से घेरा देकर बहुत बड़ा मैदान घेर लिया गया है' और बड़े घड़े खस्मे गाड़कर और उसे पाट कर देखनेवालों के [बैठने के लिये खन्द्र स्थान बनाया गया है । जिसमें एक ओर पतिष्ठित पुरुषों के लिये, दूसरी ओर साधारण लोगों के लिये और तीसरो ओरवाला स्थान स्त्रियों के लिये बनाया गया है, और ख्ियों चाले स्थान में चिढवन या पढ़ें नहीं छगाए गए हैं, क्योंकि खुद देगम साहिबा पर्दे की पाबन्द नहीं थीं । रंगभूमि ध्वजा, पताका, तोरण, बन्द नवार, फूल, पत्तों और ज्ञाड़ फानूसों से ऐसी अच्छी सजी गई है, कि जिससे देखनेवालों का दिल हिन्दुस्तान की दौलत का अन्दाज़ा कभी नहीं कर सकता । _ नीचे अखाड़े की भूमि कमर कमर सर मिट्टी छानकर ऐसी मुलायम _ बनाई गई है कि जिसमें सौ हाथ ऊंची जगह से गिरने पर भी चोट: ... बाड़े के तीनों ओर सजे इप सचारों की कत्तारें,खड़ी हैं और रंगभूमि के प्रवेशदार पर दो बड़े बड़े पिंजड़ों में भयानक सिह और बड़ा मुर्ला मैंसा बंद है। मद धीरे घीरे देखनेवाछों की भीड़ उमड़ी हुई चली आा रही है और _मवन्ध करनेवाले, सभों को उनकी योग्यता के अनुसार उचित _ स्थानों पर बैठा रहे हैं । उन ख़ियों' के बैठाने के छिये, जो कि.




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