भारतीय विद्या | Bhartiya Vidya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक १] भरतेश्वर वाहुबलि रास - किंचित्‌ आस्ताभिक [ও] प्रस्तुत रासनी भाषा आदिना खरूपना विषयमां हं अहिं विरेष चचौ करवा नथी इच्छतो । एनी माषा अने हकीज्ु खरूप, ते समयनी अर्थात्‌ ते सेकानी अने तेनी आसपासनी बीजी उपलब्ध कृतिओ - जेवी के, उक्त जंबूखामिरास, तथा विजयसेनसूरि कृत रेवतगिरिरास, अज्ञातनाम कृत आबुगिरिरास आदि-ना जेवी ज के । छन्दोरचना पण ठगभग ए अन्य कृतिओमां मढ्धी अवे छे तेवी ज छे । दोहा, वस्तु अने चउपह जेवा ते समयना सोथी प्रसिद्ध अने प्रचलित मात्रामेठ छन्दो उपरांत अमुक कूढणमां गवाय एवा ভ্রান্তলাল্ঞা रागना छन्दोनो पण आमां उपयोग थरएरो छे, जे छन्दोने कतौ पोते शसा छन्दो कहे ठे | दरेक वणि पटी जे छन्दोबाढी प॑क्तिओ - कडीओ आवे छे ते जुदा जुदा रागां गत्राय एवां आ रासाछन्दो ठे । रासगत कथावस्तु जैन साहिल्यमां बहु ज सुप्रसिद्धे । युगादि पुरुष भगवान्‌ ऋषभदेवना पुत्र नामे भरत अने बाहुबलि-ए बंने वच्चे राजसत्ताना खीकारमाटे परस्पर जे विग्रह थयो अने तेनो जे रीते अंत आब्यो तेनुं एमां वर्णन करवामां आव्युं छे । कविनी शेछी ओजसू भरी छे अने शब्दोनी झमक पण सारी छे । वीर रसनो वेग वधारे विकसित खगे छे। कथाना प्रसंगो बहु ज संक्षेपथी वर्णववामां आव्या छे तेथी कविने पोतानो काव्यरसर खिखववानो अहि अवकाश ज नथी, एटले एनी का्यक्तिनो विरोष विचार करबो अप्राप्त छे । छतां परह आस किणि कारणि कीज, साहस सद्वर सिद्धि बरीजह । रीड अनर हाथ हत्थीयार, पह जि वीर तणड परिवार ॥ १०६ ॥ आवी जे केटलीक हृदयंगम उक्तिओ मवी अवे ते उपरथी एनी रपस्तमय वाणीनी कल्पना यत्किचित्‌ थद्‌ शके तेम ठे | সং बुद्धिरास आ रासनी पछी ६३ कडीनो एक टुंको प्रबंध नामे बुद्धि रास आपवामां आब्यो छे, जेना कर्ता पण शालिभद्र सूरिज छे। जो के कतोए एमां, जेम 'भरतेश्वर बाहुबलि रास'मां आप्यां छे तेम, पोताना गच्छ अने गुरु आदिनां नाम नथी आप्यां, अने तेथी सर्वथा निश्चितरूपे तो एम न ज कही शकाय के आ रास पण ए ज शालिभद्र सूरिनी कृति छे। कारण के शालिभद्व सूरि नामना एक -बे बीजा पण प्रंथकारो थई गया छे अने तेमणे पण गुजराती




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