युगचरण दिनकर | Yug Charan Dinakar
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
321
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१०
ग्रोर उनकी नौकरी भी बरकरार रही ।
दिनकर के मन का यह द्वन्द् सामधेनी की एक कविता में अपनी समस्त
करुणा, उद्देग और विवशता के साथ व्यक्त हुआ है । एक शोर भारनेय भह-
कार तथा भावुक मन और दूसरी ओर जीवन का नग्न यथार्थ, चककी के इन
दो पाठे के वीच पिमनी हुई भावनाओं का विश्र इस पकितिया में साकार है--
युगचारश दिनकर
बात चोत में वह युद्ध का समर्थन करते ये और कविताएं सरकार के खिलाफ
लिखते थे। और दोनो ही क्षेत्रों में उनका उद्देश्य सफल हुआ । एक ओर सर-
कार विरोधी रचनाएं लिखने के कारण वे जनता के लाइले बने रहे और दूसरी
झो भ्रयोधष ! निःशेष बीन का एक तार था मै ही!
स्वभ् की सम्मिलित गिरा का एक हार था मैं हो !
रम
तब क्यों बांध रखा कारा में ?
कूद আয তুম शखुग से
बहने दिया नहीं धारा में
लहरो की खरा चोट गरजता,
कभी दिलाझों से टकरा कर
प्रहुकार प्राणो का बजता !
५
तव कयो दष्मानं यह जीवन
चष्टन सका मम्दिरमे भ्रव त्क
बत অনল আলিঙ্গা লীহাজন
देख रहा में वेदि तुम्हारी
कुछ टिसटिम, कुछ-कुछ ह्रधियारी
+,
^
मुझमें जो मर रहो, जगत में कहाँ भारती देसी ?
जो झ्रवमानित शिखा, किसी की कहां आरतो वेसी ?
र
मुँह
तब क्यों इस जम्बाल-जाल सें
मुझे फेंक सुस्काते हो तुम
मै क्या हँसता नरह देवता
पुजा का बन सुमनं याल में?
रकः
क्र में उज्जवल शंख, स्कन्ध परं
क
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