प्रिया प्रकाश अर्थात कविप्रिया | Priya prakash Arthaat Kavipriya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
450
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला प्रभाव ৮
ज्ञान ही की गरिमा कि माहमा विवेक की कि
द्रसन हौ को दरसन उर अनिये ।
पन्य को प्रकाश बद विदूया को बिलास किर्षों,
जस को निवास केसोदास जग जानियें।
मदन कदन सुत बदन रदन कियों
बिघन विनासन की बिधि पहिचानिये ॥ ३ ५
शब्द! थ--सत्व ८ सार । है सत्व गुण = सतोगुण । सन्ता = वज,
मूलकारण । की = किधो ! गरिमा = ग ख्वाई । महिमा 5 घड़ाई।
दरसन ॐ दर्शन शाद । दरसन = रूप । प्रकाशं = उजला ।
विललास = शोभा । निवास = सथान! मदेन कदन = शिव । बवन =
मुख । रदैन = दति । विधि = तरकीव, क्रिया ।
भावाथं--( श्री गणेश जीके दत की प्रशं्षामे कवि क्ता
है कि ) यह सतोगुण का सार है, या साक्षात् सत्य ही का
मूल कारण हैं, या सिंद्चियोँ की शोहरत है, या इसे बुद्धि की
बढ़ती मानें । अथवा यह ज्ञान की गरुबाई है, या विधेकको
बढ़ाई है, या फिलासफी के रूप के साक्षात् दर्शन ही हें
ऐसाही हृदय से समझ ूूे। अथवा यह पुण्य का काश
है, या बेद विद्या की शभा है, या इस संसार के यश
का निगसस्थान दी सममं) अथवा शिव ( गणेश)
के मुख का दांत है या विश्नों के नाश करने की युक्ति है ।
| अन्ध प्रणयन काल ]
मूल--प्रगट पंचमी को भयो कर्बिग्रया अवतार +
सारद से अद्गावनों फागुन सुदि बुधवार ॥
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