रवीन्द्र साहित्य भाग 21-22 | Ravindra Sahitya Bhag 21-22
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ रवोन्द्र-साहित्य : भाग २१-२२
भर आदं । बोली, नही, बेटा, फिर तुम्हे राजी होना पडेगा । तुमने उद्धार
नही किया तो मेरे लिए बडी लज्जाकी बात होगी। लडकी बडी सुशील है,
तुम्हारे योग्य है ।”
बिहारीने कहा, चाचीजी, यह मे जानता हूँ, मुझे कुछ कहनेकी जरूरत नही ।
जो तुम्हारी बहनौत हो वह कही अयोग्य हो सकती है ! भला उसके लिए मे नाही
कर सकता हूँ | लेकिन महेन्द्र -”
अन्नपूर्णाने कहा, “नहीं बेटा, महेन्द्रसे उसका ब्याह किसी भी तरह नही होनेका ।
में तुमसे सच कहती हूँ, तुम्हारे साथ उसका ब्याह होनेसे ही में सबसे ज्यादा निश्चिन्त
हो सकूंगी। महेन्द्रके साथ ब्याह हो, यह में नही चाहती ।”
बिहारीने कहा, चाची, तुम्हारी ही अगर इच्छा नही, तो फिर, मुझे क्या
आपत्ति है |
इसके बाद बिहारी सीधा राजलक्ष्मीके पास पहुँचा, और बोला, मा, चाचीकी
बहनौतके साथ मेरी सगाई पक्की हो गई है। यहाँ मेरे कुटुम्बकी कोई स्त्री तो
है नही, इसलिए हया-शरम सब छोडकर मुके सुद ही लबर देने आना पडा । “
राजलक्ष्मीने कहा, कहता क्या है, बिहारी! आज में बहुत खुश हुई तेरी
बात सुनकर । बडी सुशील लडकी है वह, तेरे ही लायक है। किसीके कहने-सुननेमें
आकर सगाई छोड न देना 1
बिहारी बोला, “भे क्यो छोडने लगा ! महेन-मदयाने खुद पसन्द करके
मेरी सगाई पक्कीकी है)
इन्-सब बाधा-विष्नोसे महेन्द्र दूना उत्तेजित हो उठा । वह् मा ओर चाचीसे
रूठकर एकं दीनहीन छात्रावासमे जाकर रहने लगा ।
राजलक्ष्मी रोती-हुई अन्नपूणकि कमरेमे पहुंची । बोली, “मभली-बहु, मेरे
लडकेने तो उदासीन होकर धर छोड दिया मालूम होता है, उसे बचाओ ।”
अन्नपूणनि कहा, “जीजी, थोडा धीरज रक्खो, दौ-चारः दिन बादं अपने-आप
ही गुस्सा जाता रहेगा 1
राजलक्ष्मीने कहा, “तुम उसे जानती नही 1 उसकी इच्छाके अनुसार कोई
काम न हो तो, वो जो जीमें आता है कर डालता है। तुम्हारी बहनौतके साथ जैसे
भी बने उसका-
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