आत्म विकास | Aatma Vikaas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
321
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१4 आत्म-विकास
'इसी से समझना चाहिए किं भय ओर अशक्ता का प्रभाव एक-सा होता
द । जब मनुष्य अपने को अशक्त पाता है, तभी वेह वेदनप्र या वेदना की
कल्पना से भयाक्रन्त होता ई । छोटे बच्चे अशक्त होते है, तभी तो वे बात-
बात में डरकर चिल्लाते हैं। अशक्त होने पर दूसरों से ही नहीं, अपने से
भी डर लगता है। क्षीणकाय व्यक्ति सदेव डरता है कि कहीं उसके हृदय
'की गति न रुक जाए। शरीर और मन से दुर्बेल बच्चे कभी-कभी अपने
चिल्लाने की आवाज से वकते है|
अयोग्यता- अयोग्यता के कारण मनुष्य को यह् भय सदा बना रहता
'है कि कहीं कोई भूल न हो जाए और भय से प्रायः भूल हो ही जाती है
क्योंकि मन में भय रहने से रही-सही योग्यता भी स्फुटित नहीं होने पाती,
मनुष्य की बोली तक बन्द हो जाती है; वह हक्का-बक्का हो जाता हू ।
अकमंण्यता--हाथ पर हाथ रखकर बठने से भय मुंह खोलकर सामने
खड़ा हो जाता है। आलस्य से पुरुषार्थ क्षीण हो जाता है और भयंकर
'यरिस्थितियां मनुष्य को दबा लेती हैं। उसको चारों ओर भय के भूत ही
दिखलाई पड़ते हैं। काम के साथ भय निश्चित रूप से समाप्त हो जाता
है। जब मनुष्य एक दिशा में चल पड़ता है तो भय उसके पैरो के नीचे आ
जाता है। युद्धस्थलों में यह देखा गया हूँ कि युद्धारम्भ के पूर्व बहुत-से
सिपाही भावी संहार की कल्पना से भयभीत रहते हैं, परन्तु युद्ध के प्रारम्भ
होने पर भीत संनिक भी गोलियों की बौषार मं निर्भय होकर दौडता हं ।
इसका कारण केवल यह् ह कि कर्मोद्यत होने पर भय समाप्त हो जाता
है; तब मनुष्य अपनी मृत्यु से भी नहीं डरता । शारीरिक श्रम से मन का
भय निश्चय ही भागंता है। आलस्य में कल्वनाजन्य भय से अपनी निस्सहा-
जाचस्था का जो अनु भव होता है' वह महाभात्मनाशी होता है। शारीरिक
शवे मानसिक शिथिलता के कारण ही प्रायः जीवन में असफलता होती है)
' दीनता--चाहे परिवारःकी दीनता हो या स्वभाव-की अथवा साहस
उत्ताहं की या লব की; केह भय उपजाती है। आर्थिक दीनता से असमर्भता
अति हीती है । पदिकारिकःदीनंता ते मनुष्य अपने को हीन मानकर दृखयों
से डरता है। स्वभाव की दीनता से स्वामी होने पर भी मनुष्य अपने
হীরক ধরা है । दौत व्यावित सदैव हीन चित्त: एवं आकुल-व्याकुल
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