कबीर : एक विवेचन | Kabir Ek Vivechan

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Kabir Ek Vivechan by डॉ. सरनामसिंह शर्मा - Dr. Sarnam Singh Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( € ) [भक्ति प्रायः नवध। मानी गयी है निन्तु उस ऐकान्तिक धर्म में जो रामानन्द को मिला, प्रेम भक्तिः सर्वोत्तम मानी गई थी। इसलिए उसे दशधा' भक्ति के नाम से अभिहित किया गया। ) ऐकान्तिक धमं के प्रवतंक माने जाने वाले नारद के “भवित-सूत्र' मे भक्ति की व्याख्या के भ्रन्तगेत उसे (सात्वस्मिन परम प्रेमरूपा! कहा गया है । इसी प्रेमा भक्तिः को रामानन्दने भ्रपने शिष्योंको दियागश्रौर कबीर उसीमें निमग्न हो गये । स्वयं कबीर ने नारदी भविति में निमग्न होकर भवसागर से तरने का' उपदेश इन शब्दों मे दिया है ।-- “भगति नारदि मगन शरीरा । इहि बिधि भवतिरि कटै कबीरा कबीर के सुरति-निरति शब्द अपनी बनावट में अधिक पुराने नहीं लगते । सुरति शब्द को सिद्धो से तथा निरति को केवल नाथो से संबधित कर सक्ते हं किन्तु वे जिन श्र्थोको व्यक्त करते हैं वे योग में सिद्ध हो सकते हैं । पदि उनमें कुछ नवीनता है भी तो यह किसी भ्रभारतीय विचारधारा से श्रायी निरति को योग की 'सम्प्रज्ञात' तथा असम्प्रज्ञात' समाधि में नहीं खोज सकते | हाँ, उनका रूप कुछ-कुछ उनसे भी मिलता है। किन्तु उनमें कबीर का सा प्रेम तत्व कहाँ है ? 'कबीर का मूल्य आँकते समय प्राय: उनका विचारक सामने आ खड़ा होता है, किन्तु उनका प्रेमी अधिक बलिष्ठ है। कबीर के विचारक' में भी उनका प्रेमी आधार रूप में संनिविष्ट है। “विचारक' कबीर समाज और धर्म दोनों पर विवेकपूर्ण दृष्टि से देखते हे और एक सत्य की खोज करते हैं । प्रेमी कबीर उसी सत्य को प्रिय के रूप में देख कर अपने प्रेम को उसी के चरणों में समपित कर देते हैं। विचारक कबीर असत्य का उच्छेदन करता है भ्ौर प्रेमी समाज को प्रेम के सूत्र में बांधने का प्रयत्न करता है। कबीर वाणी में ये दोनों चित्र यत्र-तत्र बिखरे पड़ हें। विचारक का एक चित्र इन शब्दों में देख सकते हैं :--- “एक पवन एक ही पांणी, करी रसोई न्यारी जानीं । माटी सू्‌ माटी ले पोती, लागीं कहो कहां ध्‌ छोतो ॥॥




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