वेदान्त दर्शन के प्रमुख सम्प्रदायों में ज्ञान की अवधारणा एक समीक्षात्मक अध्ययन | Vedant Darshan ke Prmukh Samprdayo Me ki Avdharna Ek Smikshatmak Adhyyan

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Vedant Darshan ke Prmukh Samprdayo Me ki Avdharna Ek Smikshatmak Adhyyan  by पूनम श्रीवास्तव - Poonam Srivastava

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वारा आरोग्य आयुसवर्धन बल सन्तान धन-धघान्यादि पुत्र आदि सुखो की याचना की गयी है। यद्यपि वैदिक सहिताएँ देवताओ के प्रति की गयी स्तुतियो के सकलन मात्र है तथापि इनमे ज्ञान सम्बन्धी विषयों का भी समावेश है। इन स्तुतियो मे परम सत्ता अभय ज्योति या परमेश्वर के देवतारूप मे प्रकट हुए विभिन्न स्वरूपो को भी वर्णन प्राप्त होता है। वैदिक ऋषियों द्वारा अपने आराध्य देव से जगत के विषय मे अनेक शकाए करते हुए ही दार्शनिक विचारों का प्रारम्भ होता है। वास्तव मे वेदो के दर्शन का पूर्ण विकास उपनिषदो मे आकर ही हो पाता है। डा० राधाकृष्णन ऋग्वेद के सूक्तो को ही दार्शनिक प्रवृत्ति का परिचायक कहते है। उनके अनुसार ऋग्वेद के सूक्त इस अर्थ मे दार्शनिक है कि वे ससार के रहस्य की व्याख्या किसी अतिमानवीय अन्तर्दूष्टि अथवा असाधारण दैवी प्रेरणा द्वारा नही बल्कि स्वतन्त्र तर्क द्वारा करने का प्रयत्न करते है। ज्ञान एव सुख की प्राप्ति ही वेदो का परम लक्ष्य है। वैदिक ऋषिगण परमसत्य के ज्ञान के भी इच्छुक है। वे इसे ही परम ध्येय मानते है तथा इसकी प्राप्ति जीवात्मा एव परमात्मा के एकीकरण से ही सभव है। कालान्तर मे वेदो के बहुदेववाद का रूपान्तर एकदेववाद मे हो गया। प्रारम्भिक वैदिक चिन्तन का स्वरूप सरल था। उसमे मोक्ष वैराग्य जैसी गूढ रहस्यमय बातो के लिए अवकाश न था। उनके कर्मकाण्ड एव भारतीय दर्शन - भाग 1 डा0 राधाकृष्णन




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