साहित्य - मीमांसा | Sahitya Meemansa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
388
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य क्या है ! १३
जीवन- जैसा कि यह हमारे संमुख प्रपंचित है --बस्तुतंत्र. तथा तथ्यों
का नहीं, हमारे विचारों ओर अनुशीलनों का भी नहीं, अपितु हमारे
सलोवेगों_ का सतानमात्न हैं, यह उनका अविच्छिस्न प्रसारमात्र है।
मनोवेग ही हमारी इच्छाओं के जन्मदाता है, उन्हीं से हमारे क्रिया-
कलाप की उत्पत्ति होती है । हमारे आचार की कसोटी हमारे मनोवेग
है, हमारे जोवनततुओं की तकली हमारा मन हैं । इस लिए वह
'साहित्य, जो एक साथ लेखक के मनोवेगों को ;सुखरित करता और
पाठक के मनोवेगों को आंदोलित करता हैं, ही, जीवन के सब से
अधिक रहस्यमय अंकन है, उसका सब से अधिक पते का, जीता-
जागता लेखा है ।
साहित्य के अधघ्तुत लक्षण के विषय में यह आपत्ति की जा 'सकती
है कि यह आवश्यकता से अधिक सकुचित होने के
कारण अव्याप्ति दोष से दूषित है | हम यह मान भी
कि जिस किसी रचना मे मनोवेगो को प्रुदित
करने की शक्ति हो, वह साहित्य है, क्या विपरात रूप से हस यह भी
कंह सक्ते है कि जो भीं रचना साहित्यपदभाक् है, उसमे मनोवेगो
को त्वरित करने की शक्ति अनिवाय रूप से रहनी चाहिए | सब
जानते है कि इतिहास साहित्य के प्रधान अगों में से एक है | कितु
इससे पाठक के मनोवेगों का अणुदन नहीं होता । यह तो जीवनन्षेत्र
में घटी हुईं घटनावलियों का लेखामात्र है; और साहित्य का उपयुक्त
' क्षण इस पर नहीं घटता । फल्नत' साहित्य का उक्त लक्षण वास्तव
में कवित्ता का लक्षण है; साहित्य-सामान्य का नहीं ।
इस आजक्तेप के उत्तर में हम यदी' कहेगे कि जो भी रचना
साहित्य और
इतिहास
साहित्यिक है, उसमें मनोवैगों फो आंदोलित करने की शक्ति का
होता अनिवाय है। हम इतिहास को साहित्ये उसी सीमा तक कहेगे,
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গা
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