पृथ्वीराज आँखें | Prithviraj Ki Aankhe
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)/ पूवेरंग' ` १६
रहस्य म प्रा हरिनारायण का मानसिकं चित्रः श्रध्वीज कौ
आँखें में प्रथ्यीरॉज चौहान का सुदृढ़ / चरित्रे-सोदिय,
बादल की सृत्यु' में बादल का मनोवेग आदि आंतरिक संघर्ष
के चित्र हैं! बराह्म संघर्ष का विनोद आुझे विशेष रुचिकर नहीं ।
अतणएव जो व्यक्ति रंगमंच पर तमाशा देखना चाहते हैं, उन्हें
संभवतः मेरे नाटकों से नियाशा हो । यदि हमारें रंगमंच पर
जीवन अबतरित होना चाहता है; तो में नम्नता-पुबंक अपने
नाटकों को उपस्थित करते का साहस करता हूँ। [
एकांकी नाठक में अन्य प्रकार! के नोटकों से विशेषता होती है ।
उसमें एक ही घटना हाती है, ओर वह घटना नाटकीय कोशल से
ही कौतूहल का संचय करते दए चर्म सीमा ( (11६ ) तक
पहुँचती है । उसमं कई श्प्रधान प्रसंग नहीं रता । एक^एक
वाक्य च्रीर एक-एक शद प्राण॒ की तरह आवश्यक रहते हैं। पात्र
चार था पाँच ही हाते हैं, जिनका संबंध नाटक की घटना से
संपर्णतया संबद्ध रहता है। वहाँ केवल मनोरंजन के लिये
अनावश्यक पात्र की गजाइश नहीं । प्रत्येक व्यक्ति की
रूप-रेखा पत्थर पर खिची हुई रेखा की भाँति स्पष्ट ओर गहरी
होती है । विस्तार के अभाव में प्रत्येक घटता क॒ल्ली की भाँति
खिलकर पुष्प की माँति विकसित हो उठती है। उसमें लता
के समान फेलमे की उच्छूंखलता नहीं. । घटना “के प्रत्येक
भाग का संबंध मनुप्य-शरीर के हाथ-पैरों के समान है, जिसमें
अनुपात विशेष से स्वना होकर सोंदर्य की सृष्ठि होती है।
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