वेदान्त- सिध्दान्त | Vedant Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्विवीय खण्ड 1 डे कहेंगे कि गाता में संसार को असत्य नहीं कहा है । परन्तु मथम खंड में हम इसे सप्रमाण सिद्ध कर चुके हैं कि गीवा में भी संसार को असत्य सिद्ध किया है । वहां पर आप देख सकते हैं । ही ओर थी देखिये दशरथ रघु मनु ननक रावण परझुराम और हनुमानजी तथा अनेक त्रपि मुनि थे छोंग क्या आती थे ? कोन कह सकता हे खेर यह तो पुरानी बात है 4 इसको शायद कुछ लोग न मानें और कुछ शेकार्य उपस्थित करें तो उनसे हम पूछते हैं कि वत्तेमान समय के स्वामी बिंवेका- नन्द वा० ए० तथा स्वामी रामतीर्थसी एम० ए० जो वेदान्त के पूरे पस्षपाती थे और संसार को सदा असत्य मानते थे ॥ क्या वे आलसी थे ? क्या उनसे कुछ भी देश का उपकार नहीं हुवा ? कया इन छोगों ने अपने असंख्य श्रोतादों के हृदय में नया जीवन नहीं ढाल दिया कोन कह सकता है । ये वे महात्मा थे जिनके अंसीम पुरुपाथ से जिनके अडुत आत्मव -से जिनके श्रमावज्ञाठी व्याख्यान से अमरीका में भी वेदान्त का झंडा कहरा रहा हे । निसके सामने हजारों अमरीकन सिर झुकाने के लिये तैय्यार हैं। इन्हीं महात्मा्वों के श्रमाव को देखकर अमरीका भी जान गया कि हिन्दुस्तान निरे निकम्मे और आलूसियों से नहीं भरा है किन्तु भारत एक ऐसी भूमि है जो फिलासुफर्रों की माता और घ्रह्मज्ञानियों की जननी है




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