आवश्यक सूत्र | Avashyak Sutra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी श्री ब्रजलाल जी महाराज - Swami Shri Brajalal JI Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
आवश्यकसून एक सम्पीक्षात्सक् अध्ययन
भारतीय साहित्य मे आगम' शब्द शाम्त्र का पर्यायवाची हे । आवश्यकचूणिकार ने आगम शब्द की
परिभाषा करते हुए लिखा है--जिसके द्वारा पदार्थों का अवबोध होता है, वह आगम है । अनुयोगद्वारचूणि मे
लिखा है--जो आप्तवचत हे, वह आगम दहै 1 अनुयोगद्वार मलधारीय टीका मे आचाय ने झ्रागम शब्द पर
चिस्तन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि जो गुरुपरम्परा से आता हे, वह श्रागम है । आचाये वाचस्पति मिश्र
ने लिखा हे--जिस शास्त्र के अनुशीलन से अभ्युदय एवं ति श्रेयस् का उपाय अवगत हो, वह आगम है । अभिनव-
गुप्ताचाय के अभिमतानुसार जिसके पठन से सर्वागीण बोध प्राप्त हो, वह श्रागम हे । इसी प्रकार आचार्य
जिनभद्गगणी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य से शास्त्र की परिभाषा देते हुए लिखा है--जिसके द्वारा यथार्थ
सत्य रूप ज्ञेव का, आत्मा का परिवोध हो और अनुशासन किया जा सके, वह शास्त्र है । आगम और शास्त्र के
ही श्र में सत्र शब्द का भी प्रयोग होता है। सघदासगणी ने वृहत्कल्पभाष्य मे सूत्र शब्द की व्याख्या करते हुए
लिखा हे--जिसके अनुसरण से कर्मो का सरण / अ्रपनयन होता है, वह सूत्र है* । विशेषावश्यकभाष्य में निरुक्त-
विधि से अर्थ करते हुए लिखा है--जो अर्थ का सिंचन / क्षरण करता है, वह सूत्र है? । आचाये अभयदेव ने
स्थानागवृत्ति मे लिखा है--जिससे গণ सून्नित / गुम्फित किया जाना है, वह् सूत्र हे< । बृहत्कल्पटीका में लिखा
हे--यूत्र का अनुसरण करने से अष्ट प्रकार की कमें-रज का अपनयन होता है, अत वह सूत्र कहा जाता हैर ।
जेन साधना का प्राण आवश्यक
जैन आगमसाहित्य में आवश्यकसूत्र का अपना विशिष्ट स्थान है। अनुयोगद्वारचूणि मे आवश्यक की
परिभाषा करते हुए लिखा है--जो गरुणशूल्य आत्मा को प्रशस्त भावों से आवासित करता है वहे आवासक/
आवश्यक है* * । अनुयोगद्वार मलधारीय टोका मे लिखा है, जो समस्त गणो का निवासरथान है, वहं आवासक/
१ णज्जति अत्था जेण सो आगमो । “ आवश्यकचूणि १1३६
२ अत्तस्स वा वयण झआगमो । +अनुयोगद्वारचूणि पृष्ठ १६
३ गुरपारम्पर्यणागच्छतीत्यागम । --प्रनुयौगहार मलधारीय टीका, पु २०२
४ आसमस्तात् श्रथं गमयत्ति उति श्रागम ।
५ सासज्जिति तेण तहि वा नैयमायतो सत्य ।
६ श्रनुसरइ त्ति सूत्त। -वृहत्कल्प भाष्य, ३११
७, सिचति खरइ जमत्थ तम्ह्ा सुत्त निरुत्तवि्हिणा 1 --चि भा १३६८
८ सूटयन्ते श्रनेनेति सूत्रम् । --स्थानागवृत्ति, पृष्ठ ४९
९ सूत्रमनुसरन् रुज --अश्रष्टप्रकार कर्म अपनयति तत सरणात् सूत्रम् --बृहत्कल्पटीका, पृष्ठ ९५
१० सुण्णमप्पाण त पसत्यभावेहि आवासेतीति आवास । +--अनुयोगद्वारचूणि, पृ १४
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