बापू की प्रेम - प्रसादी | Bapu Ki Prem Prasadi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bapu Ki Prem Prasadi by घनश्याम दास बिड़ला - Ghanshyam Das Vidala

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about घनश्याम दास बिड़ला - Ghanshyam Das Vidala

Add Infomation AboutGhanshyam Das Vidala

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रस्तावना भाघीजी पत्न व्यवहार मे बहुत ही नियमित थे। पत्न-ब्यवहार द्वारा ही वे जसख्य लोगा से हादिक सम्बध रख सकते ये और उ ह जीवन के ऊचे आदश सिद्ध बरने के लिए प्रेरित करते थे । जिसके साथ सम्ब ध जाया उसके व्यक्तिगत जीवन मे हृदय से प्रवेश पाना, उसवी मोग्यता उसकी खूबी और उसभी गहराई को समयकर उसके विकास में मदद देना यह थी उनके पत-व्यवहार की विशेषता । गराधीजी का पत्न-साहित्य उनके लेखा और भाषणों के जितना ही महत्व वा है। उनके व्यवितत्व की समझने के लिए उनका यह पत्र साहित्य बहुत ही उपयोगी है। मैंने देखा है कि पत्ता म उनकी लेखन शली भी अनोखी होती है। ससार में शायद ही ऐसा कोई नता हुआ होगा, जिसने अपने पीछे गाधीजी वे' जितना पत्र-ब्यवहार छोड रखा हो । गाधीजी का पत्न व्यवहार पटते समय मुझे मणा यही प्रतीत हज है, मानो मैं पविन्न गयाजी मे स्नान और पान कर रहा हू । मुें उसम हमेशा पवित्नता और प्रसानता वा ही अनुभव हुआ है । उसके इद गिद का वायुमडल पावन, प्राणदायी और प्रशमकारी है। इसीलिए जब क्री धनए्यामदास विइला ते ग्राधीजी के साथ का अपना पत्न-व्यवहार मरे पास भेज दिया तो मुझे बडा आनाद हुआ और उत्साह के साय में उसे पटन लगा। जसं-जैस पढता गया यजन वस स्पष्ट होता गया कि यह्‌ केवल घनग्यामदासजी जीर गाघीजी के बीच वा ही पत्र व्यवद्वार नही है। इसमे तो गांधीजी के अभिन साथी स्व० महादवभार दसाद और घनश्यामदासजी क वीच दा पत-य्यवहार ही सबसे अधिव है। इसके अतिरिकत गाधीजी व आय साथिया देश मे बई नताआ और कामदर्ताआ, अग्रेज वाइसराया और बूटनीनिना के साथ दा पत्र व्यवहार भी है और उनवी मुलावाता का विवरण भी । सशेफ म--हमार युग दा एक महत्व षा इतिहास इमम भरा ह्भादै। यह देवर मेर मुह स उल्गार निक्लषडा बाण ! यह सारी सामग्री पाव साल पहले मेर हायाम अती।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now