अज्जना | Ajjana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अक 5 ५५ ৯ উপ क পা ६ दूसरा दृश्य स्थान--आदित्यपुरमे राजा प्रह्मद विद्याधरका महल । समय--दोपहर । [ राजकुमार पवन और प्रहसित। ] प्रहसित---राजकुमार, निश्चय यह आपका परम सौभाग्य है कि आपका विवाह राजकुमारी अज्जनासे होना निश्चित हुआ है जो इस समय भारत-मरमे न केवल परम सुन्दरी ही है किन्तु परम सुशीढा भी है। पवन---परन्तु चित्र देखनेसे तो यह प्रतीत होता है कि वह वास्तविक नहीं है | प्रहासित--वास्‍्तविक नहीं तो क्‍या कल्पित है पवन---मेरा यही विचार है। प्रहसित--इस विचारका कोई कारण पवन--कारण यह किं चित्रम वह जितनी सुन्दरी दिखा देती है, उतनी सुन्दरी स ससारमे होना समव नही । पुष्पकी मेति कोमर, पृय्यंकी भाँति तेजस्विनी, चन्द्रमाकी भांति प्रकाशमयी, गगाके समान मनोहर । क्या ऐसी खस्वियों इस ससारमे होती है * भेरा तो विचार है कि चित्रकारने हिमाख्यकी किसी पवित्र कन्दरामे बेठकर अत्यन्त परिश्रमसे मधुर सगीत, उच्कोटिकी कषिता ओर उत्तम प्रकारकी रिल्पकलाको বন্দ स्थानपर इकट्ठा कर दिया है और उसकी रसगभो छेखनीने उसे चित्रके रूपमे कागज़पंर बखेर दिया है। प्रहसित--इस कविताके दिए आपको बधाई देनी चाहिए । पवन-- नही मित्र, नहीं। तुम व्यग करते'हो, परन्तु मेंरा রর 7 ¢ (9० 4 ^~ ०१ (क 1




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