श्री सूत्र कृतांग सूत्र | Shri Sutra Kritang Sutra

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Shri Sutra Kritang Sutra by गोपालदास जीवाभाई पटेल - Gopaldas Jeewabhai Patel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथमं अध्ययन সপ (°)- बिभिन्न षादों की चचा (१) “जीव के बन्धन के कारण को जानकर, उसे दूर करना वाहये । इस पर जंबुस्वामी ने सुधमस्वामी से पूंछा--महाराज ! महावीर भगवान्‌ ने किस को बन्धन काहि भ्रौर वह कैसे छूट सकता है? (५5) सुधसस्वामी ने उत्तर दिया--हे आयुष्मान्‌! मनुष्य जब तक सचित्त-अचित वस्तुओं में न्यूनाधिक भी परिग्रह-जुछधि रहता है, या दूसरों के परिप्रह का अनुमोदन करता है, तब तक वह दुः्खों से मुक्त नहीं हो सकता। जब तक वह स्वयं प्राणी-हिंसा करता है, दूसरों से कराता है या दूसरे का अलुमोदन करता है, तबतक उसका चैर बढता जाता है अर्थात्‌ उसे शांति नहीं मिक्ष पाती। अपने कुल ओर सम्बन्धियों में मोह-मसता रखनेवाला मनुष्य, अन्त में जाकर नाश को प्राप्त होता है क्‍योंकि धन आदि पदार्थ या उसके सम्बन्धी उसकी स्वी रक्षा करने में असमर्थ होते हैं। ऐसा जान कर बुद्धिमान्‌ मनुष्य अपने जीवन के सच्चे महत्व को विचार करके, ऐसे कर्म-बन्धनों के कारणों से दूर रहते हैं। [२-२]




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