कुन्दकुन्दाचार्य के तीन रत्न | Kundkundacharya Ke Teen ratn

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Kundkundacharya Ke Teen ratn by गोपालदास जीवाभाई पटेल - Gopaldas Jeewabhai Patel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ कुन्दकुन्दाचायेके तीन रत्न करते है कि न्तकथा ( प्रसिद्ध-कथा-न्याय ) के अनुसार बुन्दङन्दाचायं स्वय पूर्व विदेहमें गये थे और श्रीसीमन्धर स्वामीके पाससे विद्या सीखकर आये थे। श्रवणबेलगोलके शिलालेखोमे भी, जिनका अधिकाश भाग बारहवी शताब्दीका है, उल्लेख मिलता हैँ कि कुन्दकुन्दाचार्य हवामे ( आकाशमे ) अधर चल सकते थे । दवेताम्बरोके साथ गिरनार पर्वबतपर जो विवाद हुआ था, उसका उल्लेख आचार्य शुभचन्द्र ( ई० स० १५१६-५६ ) ने अपने पाण्डवपुराण- में किया है। एक गुर्वावलीमें भी इस बातका उल्लेख है ।' इतना तो निरिचत है कि दोनोमे-से कोई भी दन्तकथा हमे ऐसी जानकारी नहीं कराती जिसे ऐतिहासिक कहा जा सके । उनमें थोडी- बहुत जो बातें है, उनमे भी दोनो दन्‍्तकथाओमे मतभेद है। बाकों आकाशम उडनेको भौर सीमन्धर स्वामीको मुलाकातकी बात कोई खास मतलबकी नहीं । अतएव अब हमे दूसरे आधारभूत स्थलोसे जानकारी पानेके लिए खोज करनी चाहिए । भद्रबाहूके शिष्य ? कुन्दकुन्दाचायने स्वय, अपने ग्रन्थोमे अपना कोई परिचय नही दिया । बरस अणुवेबखा' ग्रन्थके अन्तमे उन्होंने अपना नाम दिया है, और बोधप्राभृत' ग्रन्थके अन्तमें वे अपने आपको वादश अग-ग्रनयोके ज्ञाता तथा चौदह पूर्वाका विपुल प्रसार करनेवाले गमकगुरु श्रुतज्ञानी भगवान्‌ भद्रबाहुका दिष्य प्रकट करते हं । “बोधप्राभुत' की इस गाथापर खुत- सागरने ( १५वी शतान्दीके अन्तमे ) सस्कृत टीका च्खी ह । अतएव इस गाथाको प्रक्षिप्त गिननेका इस समय हमारे पास कोई साधन नही है । दिगम्बरोकी पट्टावलीमे दो भद्रबाहुओका वर्णन मिलता है। दूसरे मद्रबाहु १ देखो-जैनितेषी पु० १० ¶० २७२ ।




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