कुन्द्कुन्दाचार्य के तीन रत्न | Kundkundaacharya Ke Teen Ratn

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Kundkundaacharya Ke Teen Ratn by गोपालदास जीवाभाई पटेल - Gopaldas Jeewabhai Patel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट कुंन्दकुन्दाचायके तीन रत्न इतना तो निश्चित है कि दोनोंमें से कोई भी दंतकथा हमें ऐसी जानकारी नहीं कराती जिसे ऐतिहासिक कहा जा सके। उनमें थोड़ी-बहुत जो बात दै, उनमें भी दोनों दंवकथाओंमें मतभेद है। बाकी आकाशमें उड़नेकी ओर सीमन्धर स्वामीकी मुल्नाकातकी बात कोई खास मतलबकी नहीं। अतएव अब हमें दूसरे आधार- भूत स्थलोंसे जानकारी पानेके लिए खोज करनी चाहिए । भद्रबाहुके शिष्य कुन्दकुल्दाचायने स्वयं, अपने अन्थोंमें अपना कोई परिचय नहीं दिया। बारस अणुवेक्खा' भ्रन्थके अच्तमें उन्होंने “ अपना नाम दिया है, ओर बोधप्राश्षत' अन्धके अन्तम वे अपने आपको 'द्वादश अंगअंथोंक्रे ज्ञाता तथा चौदूह पूर्बोका विपुल प्रसार करने वाले गमकगुरु श्रुतज्ञानी भगवान्‌ भबबाहुका शिष्यः प्रकट करते है । बोधप्राश्नत! की इस गाथा पर श्रुत- सागरने (१५ वीं शताब्दीके अंतमें ) संस्कृत टीका लिखी है । अतणएब इस गाथाको अज्षिप्त गिननेका इस समय हमारे पास कोई साधन नहीं है। दिगम्बरोंकी पद्टावलीमें दो मद्रबाहुओंका वर्णन मिलता है। दूसरे भद्रबाहु महावीरफे वाद्‌ ५८९-६१२ वर्ष अथोत्‌ ईं० स० ६२-८५ में हो गए हैं। परन्तु उन्हें बारह अंगों ओर चौदह पू्वोंका ज्ञाता नहीं कहा जा सकता; क्योंकि ऐसी परम्परा है कि चार पूर्वग्रंथ तो अथम भद्गबाहुके बाद ही लुप्त हो गए थे ओर वदी अन्तिम चौदह पूर्वो ज्ञाता ये! अव अगर कुल्दुकुल्दाचाय, प्रथम भद्गबाहुके शिष्य हों तो कहना चाद्विए कि कीः




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