शिशुपाल वधम और किरातार्जुनीयम के प्राकृतिक चित्रण का अध्धयन | Sishupal Vadaham Ayur Kirartaryunium Ka Prakritik Chitraon Ka adhdhyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : शिशुपाल वधम और किरातार्जुनीयम के प्राकृतिक चित्रण का अध्धयन  - Sishupal Vadaham Ayur Kirartaryunium Ka Prakritik Chitraon Ka adhdhyan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

आशीष कुमार शुक्ल - Ashish Kumar Shukla

नाम- आशीष कुमार शुक्ल पुत्र श्री शोभा शंकर शुक्ल एवं श्रीमती हीरावती शुक्ला
जन्म – २१ - अगस्त – १९९०
जन्म स्थान - ग्राम - हरीपुर, पोस्ट- अभियां, जिला- भदोही
(२२१४०४) उत्तर प्रदेश

कार्यरत : (रसायन विभाग) डी.ए.वी. महाविद्यालय,
सेक्टर - १०. चंडीगढ़

आदर्श : प्रोफेसर के. एन. पाठक (पूर्व उप - कुलपति पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़)

Mobile No.: 9878 53 7472
E-mail - [email protected]

सलाहकार : मयंक भूषण पाण्डेय (डी.ए.वी.चंडीगढ़)

वह अपने दादा पंडित श्री चंद्रबली शुक्ल के साथ सदैव धार्मिक कहानी सुनकर समय व्यतित करते थे| कवि जी इस समय डीएवी महाविद्यालय, चंडीगढ़ में कार्यरत हैं। वह अपना आदर्श 

Read More About Ashish Kumar Shukla

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
= 1. পি শেখে বক শে 1 ष्म ४ धामाव भा एएभद एक पदक ানেম্যআারাদন্্যারামস্্যনয 24 05 ॐ ॐ ध ३ न ১ কাযা कण সা ६ मारा “1 ॥ की विभूति है। इन्होने इस सिद्धान्त की व्यवस्था काव्य में की तथा उसकी... | | 1 पूर्ण व्याख्या के लिए ध्वनि के सिद्धान्त की सद्भावना की। इतने से सन्तुष्ट ह न हए, प्रत्युत उन्होंने अलंकार ओर रीति के सिद्धान्तो को भी अपनी काव्य प पद्धति मे समुचित स्थान दिया। इसका फल यह हुआ कि काव्य का রর | सर्वागीण वर्णन सर्वप्रथम अपने ग्रन्थ में उपस्थित किया। अलंकार शस्त्रके < ২ ९ इतिहास मेँ यह काल सुवर्ण युग माना जाता है। क्योकि साहित्य शास्त्र के . টার £ ॥ ५ है ९ भिन्न-मिन्न मौलिक सम्प्रदाय इसी युग में उत्पन्न हुए और फले-फले |: ... 9 ছা काव्य को कवि का कर्म कहा गया है, कवि शब्द की निष्पत्ति डुकृअ्‌ [घातु से “अद” पाणिनी सूत्र से इ' प्रत्यय करने पर होतीहै। প্র ५ ध्वन्यालोककार आनन्दवर्धनाचार्य ने कवि को स्वयं प्रजापति या ब्रह्मा (4 ( ओर काव्यसंसार को उसकी सृष्टि कहाहै- ध 7“ अपारे काव्य छखारे कविरेकः प्रजाफतिः।/ ५. ८ ० ঢু ছু यथार्ने रोचते विश्वतथेद परिवर्तते//// ` ५ | রঃ ९ इस अपार काव्य संसार का निर्माता कवि है। उस कविप्रजापत्ति की 5 + সত প্রহচ্ঞা জীত रुचि के अनुसार ही इस काव्य संसार की रचना होती है। 5, 4 प्राचीन अलंकारिकों की मर्यादा रही है कि वे काव्य को इस सृष्टि का | इ & টু দুলে ্ श ২ সর চি হে ई 1 =? न সি < रसमय प्रतिरूप मानते रहे हँ ओर कवि को रसमय काव्य जगत्‌ काष्टा ३. जैसे स्रष्टा ओर सृष्टि मे शक्तिमान ओर शक्ति प्रचय की दृष्टि से अभेद हि রর নর ব্যাড কু রি 4 ए १ ही रहा करता है | जैसे ही कवि ओर काव्य में भी यह तो वैदिक ऋषियों अष्टाध्यायी 2. ध्वन्यालोक, पृ0 422




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now