शिशुपाल वधम और किरातार्जुनीयम के प्राकृतिक चित्रण का अध्धयन | Sishupal Vadaham Ayur Kirartaryunium Ka Prakritik Chitraon Ka adhdhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
153 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
नाम- आशीष कुमार शुक्ल पुत्र श्री शोभा शंकर शुक्ल एवं श्रीमती हीरावती शुक्ला
जन्म – २१ - अगस्त – १९९०
जन्म स्थान - ग्राम - हरीपुर, पोस्ट- अभियां, जिला- भदोही
(२२१४०४) उत्तर प्रदेश
कार्यरत : (रसायन विभाग) डी.ए.वी. महाविद्यालय,
सेक्टर - १०. चंडीगढ़
आदर्श : प्रोफेसर के. एन. पाठक (पूर्व उप - कुलपति पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़)
Mobile No.: 9878 53 7472
E-mail - [email protected]
सलाहकार : मयंक भूषण पाण्डेय (डी.ए.वी.चंडीगढ़)
वह अपने दादा पंडित श्री चंद्रबली शुक्ल के साथ सदैव धार्मिक कहानी सुनकर समय व्यतित करते थे| कवि जी इस समय डीएवी महाविद्यालय, चंडीगढ़ में कार्यरत हैं। वह अपना आदर्श
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= 1. পি শেখে বক শে 1 ष्म ४ धामाव भा एएभद एक पदक ানেম্যআারাদন্্যারামস্্যনয 24
05 ॐ ॐ ध ३ न ১ কাযা कण সা ६ मारा “1
॥ की विभूति है। इन्होने इस सिद्धान्त की व्यवस्था काव्य में की तथा उसकी... | |
1 पूर्ण व्याख्या के लिए ध्वनि के सिद्धान्त की सद्भावना की। इतने से सन्तुष्ट ह
न हए, प्रत्युत उन्होंने अलंकार ओर रीति के सिद्धान्तो को भी अपनी काव्य प
पद्धति मे समुचित स्थान दिया। इसका फल यह हुआ कि काव्य का রর
| सर्वागीण वर्णन सर्वप्रथम अपने ग्रन्थ में उपस्थित किया। अलंकार शस्त्रके < ২
९ इतिहास मेँ यह काल सुवर्ण युग माना जाता है। क्योकि साहित्य शास्त्र के . টার £ ॥ ५
है ९ भिन्न-मिन्न मौलिक सम्प्रदाय इसी युग में उत्पन्न हुए और फले-फले |: ... 9 ছা
काव्य को कवि का कर्म कहा गया है, कवि शब्द की निष्पत्ति डुकृअ्
[घातु से “अद” पाणिनी सूत्र से इ' प्रत्यय करने पर होतीहै। প্র
५ ध्वन्यालोककार आनन्दवर्धनाचार्य ने कवि को स्वयं प्रजापति या ब्रह्मा (4 (
ओर काव्यसंसार को उसकी सृष्टि कहाहै- ध
7“ अपारे काव्य छखारे कविरेकः प्रजाफतिः।/ ५. ८ ० ঢু ছু
यथार्ने रोचते विश्वतथेद परिवर्तते//// ` ५ | রঃ
९ इस अपार काव्य संसार का निर्माता कवि है। उस कविप्रजापत्ति की 5
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প্রহচ্ঞা জীত रुचि के अनुसार ही इस काव्य संसार की रचना होती है। 5,
4 प्राचीन अलंकारिकों की मर्यादा रही है कि वे काव्य को इस सृष्टि का |
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रसमय प्रतिरूप मानते रहे हँ ओर कवि को रसमय काव्य जगत् काष्टा ३.
जैसे स्रष्टा ओर सृष्टि मे शक्तिमान ओर शक्ति प्रचय की दृष्टि से अभेद हि রর নর
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१ ही रहा करता है | जैसे ही कवि ओर काव्य में भी यह तो वैदिक ऋषियों
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2. ध्वन्यालोक, पृ0 422
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