गाँधी- विचार- दोहन | Gandhi-vichar-dohan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.61 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about किशोरीलाल मशरूवाला - Kishorilal Mashroowala
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धरम : श्रहिंसा'
वाजुर्ये हैं; इसीलिए सत्य और भ्रहिंसा थे एक दी तल
का परिचय कराने वाली दो हैं ।
कितने ही धर्मों में जो यह कहा गया है कि इश्वर प्रेम
स्वरूप दै सो उस प्रेम ्रोर झरष्टिंसा में कोई भेद नहीं है ।
प्रेम के छुद्ध रूप का ही नाम श्रहिंसा है.। परन्तु प्रेम में
राग श्रौर मोह की गंध आा जाती है । जहाँ राग और मोह
होगा वहाँ ट्रेप का भी चीज श्रवश्य होगा । इसीलिए तत्व-
वेत्ताओं ने प्रेम शब्द का प्रयोग न करके “अहिंसा' की
योजना की है श्रीर कहा है कि 'श्रहिंसा परम घम है ।'
श्रहिंसा-घ्म का रथ इतना ही नहीं है कि दूसरे के शरीर
या मन को दुःख या चोट न पहुँचाना; यह तो श्रह्दिंसा
धर्म का एक टश्य परिणाम कहा जा सकता है। स्थूल
दृष्टि से देखें तो ऐसा प्रतीत हो सकता है कि किसी के
शरीर और मन को तो दुःख या हानि पहुँच रही है, परन्तु
वास्तव में बह शुद्ध अहिंसा धम का पालन हो । इसके
विपरीत ऐसा भी हो सकता है कि वात्तव में दिंसा तो
की गई है परन्तु वह इस तरह से कि जिस से शरीर या
मन को दुख श्रथवा हानि पहुँचाने का आारोप न किया
जा सके । अतएव हिंसा का ' भाव दृश्य परिणाम में
नहीं; वहिक भ्रन्तकरण को राग-द्रेप-्दीन स्थिति में है ।
फिर भी दृश्य परिणामों की उपेक्षा नहीं की जा सकती, ।
क्योंकि यद्यपि वे हैं-तो स्थूल साधन तथापि हमारे मन में
विकसित अद्दिसा-दृत्ति को स््रयं हमारे तथा दूसरों के सम-
हम
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