काव्य के रूप | Kavya Ke Roop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य का स्वरूप & ननियतिकृतनियमरहितां ह्खवादकमयीमनन्यपरतन्त्राम्‌ । नवरसरुचिरां निमितिमादंधती भारती कवेजंयति ॥ छर्थात्‌ नियति (भाग्य) के नियमों कै बन्धन से रदित, केवल श्रानन्द से ही भरपूर, दुसरे कौ वश्यता से रहित नवरसों से सुशोभित कवि कौ बाणी कौ जय हो| इस पद्म में कवि की रचना को ब्रह्मा की रचना से प्रधानता दी गईं है। ब्रह्मा की रचना भाग्य के नियमों पर निमर रहती है किन्तु कबि की रचना ऐसे बन्धनों से मुक्त है| वास्तव में कविता अनन्य परतन्त्रता द्ोने के कारण सब बन्धनों से मुक्त উ। काव्य में आत्मा का पूरा प्रभाव प्रकाशित होता है, बाह्य सामग्री का आश्रय और बन्धन नहीं रहता । केवल स्वातन््य श्रौर श्रानन्द का प्रसार होता है| श्रार्मा नियति के बन्धनों पर विजय प्राप्त करने मे समथ होती है किन्तु कठिनता फे साथ | जब तफ उन बन्धनो का प्रभाव रहता है तब तक गति कुरिटत-सी रहती हे । कवि जर्होँ संसार मै विरोध, वैषम्य श्रौर प्रतिकूलता देखता है वहाँ वह उसको श्रपनी कल्पना मेँ ्रपने श्रादर्शौ फे श्रसुकूल ठालने का प्रयत्न करता हे । इसीलिए कहा गया दे कि. कवि प्रजापति हे, संसार को 'हालता हे | कवि की रुचि के अनुकूल उसकी सृष्टि बन जाती है अपारे काव्यसंसारे कविरेव प्रजापतिः यथास्मं रोचते विश्वं तथेदं परिवेत्तते ॥ -স্সহ্লি पुराणा (३३६।१०) काव्य के संसार में आत्मा की गति अकुण्टित हो ज्ञाती है | नियम के बन्धनो से मुक्त होने का अथ्थ उच्छं खलता नहीं, उसमें श्रृंखला रद्दती हे | किन्तु वह लोहे कौ जड़ श्वृंखला नहीं वरन्‌ भावों का चेतन सम्बन्ध-सूत्र हे जिसको प्राकृतिक नियमों का भार नहीं तोड़ सकता । यह श्रुखला देश शीर काल के बन्धनौ से संकुचित नहीं होती वरन्‌ उसका प्रसार आकाश से पाताल तक व्याप्त हो जाता हे । इस स्वतन्त्रता में नियम-विरुद्धता नहीं वरन्‌ आत्मा का डल्लास और विकास . भरा हुआ है। काव्य उसी आध्यात्मिक स्वतन्त्रता के प्रभाव का फल्न है जो जड़ नियमों के प्रस्तर-खण्डों को तोड़कर स्वच्छुन्द रूप से होने की सामथ्य रल्ता है | यदि वह नियमबद्ध हे तो वह दूसरों के आश्रित नहीं । इसका श्रमिप्राय यद न सममः लेना चाहिए कि काव्य प्राकृतिक नियमों की नितान्त अवहेलना करता हे | वह प्राकृतिक नियमों का आदर करते हुए भी उनसे ऊपर जाने का प्रयत्न करता है | कवि अपनी कल्पना में वास्तविकता का आधार नहीं छोड़ता किन्तु बह उसका आश्रय लेकर ही भावी समाज के स्वप्न देखता हे, इसी प्रकार वह समाज का नियामक बनता हे | काव्य इुन्‍्द के नियमों से बँघा हुआ बतलाया जता है किन्तु द्वन्द के ये नियम बाहरी नहीं हँ | काव्य उन नियमों का श्रलुकरण नदीं करता वरन्‌ ये नियम काव्य कौ चे




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