संसार के स्त्री - रत्न | Sansar Ke Stree-ratn
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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परंतु ऐसा होना न बदा था । वह निरंतर राजा की सहायता
करती रही, उसके उड् सैनिकों का सुधार करती रदी ओर स्वयं
निष्काम भाव से तपस्या का जीवन व्यतीत करती रही । उसने
कई बार राजा से विदा माँगी, यहाँ तक कि एक बार अपना
` चमकीला कवच उतार कर गिरजाघर में लटका दिया और निश्चय
किया कि उसे फिर न पहनूँगी | पर भावी को कोन टाल सका है !
. राजा के अनुनय-विनय से विवश होकर वह उसे छोड़ न सकी ।
जब ब्रेडफ़ोर्ड के ड्यूक ने बगेडी के उ्यूक से संधि करक
इंग्लैंड के पक्ष में लड़ना आरंभ कर दिया ओर चाल्से सप्तम का नाक
में दम कर दिया, तो चाल्से कभी कभी जोन से पूछ बैठता--“अब
दैदी बाणी तुम्हें इस विषय में क्या कहती है ९! परंतु जोन कभी कुछ
और कभी कुछ सुनती थी । परस्परबिरोधी श्चौर संकीणे प्रलाप
सुनने कै कारण जोन पर से राजा का विश्वास उठता गया। इख
समय के पश्चात् चाल्से ने पेरिस की ओर प्रयाण किया चौर सेट
श्रोनोर ( 5६. 01015 ) के आसपास के स्थानों पर आक्रमण
कर दिया । इस युद्ध सें आहत होकर देवी एक बार फिर खाई में
गिर पड़ी । परंतु इस संकट मे सारी कौ सारी सेना ने ही उसका
परित्याग कर दिया । वेचारी लोथं के ठेर मे निःखदाय पड़ी थी ।
ज्ैसे-कैसे निकलकर उसने अपनी जान वचाई । पर श्र॑त में बगैडी
कै ङयक ने जब केम्पेन ( (2701९76 ) को घेर रखा था, वह
बीरता से सब से आगे लड़ती हुई पकड़ी गई । सारी सेना भाग गई
ओर उस अकेली को पीछे छोड़ गई । का
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