श्रीमद्भगवदगीतार्थ - संग्रह | Shri Madbhagavadageetarth - Sangrh

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Shri Madbhagavadageetarth - Sangrh by चतुर्वेदी द्वारिकाप्रसाद शर्मा - chaturvedi dwarikaprasad sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपक्रम । & गोपाल-ठीक द! पर शय सुमे यद सुनाश्रो कि श्रीकुष्ण ने क्या कद कर श्रज्नुन को युद्ध मे प्रवृत्त किया । गोविन्द-अच्छा ! कहता हूँ, खुनो। गोपाल--किन्तु पहिले एक बात मुझे और समझा दो | गोविन्द- क्या ? गोपल-श्रीकृष्ण ने, साक्तात्‌ परब्रह्म का भ्रवतार दो छर, पाएडत्री हाँ का पक्त क्यों लिया ? शोविन्द--भ्रीकृष्ण तो दोनों पक्ष बालों के सहायता देने का तयार थे। तयार द्वीन थे किन्तु दोनों दल वालों के। सहायता भी दौ थी । दुर्य्यो धन के बल द्वारा ओर पाणएडवों को मंत्रणा द्वारा ! ग्ोपाल-किन्तु ! इसमें भी तो श्रोकृष्ण का पक्षपात पाया जाता हैं । गोविन्द--पाया जाय | किस्तु श्रोकृष्ण तो सबसे पहले कौरवा के पास इनको मरणा दास सहायता देने के लिये गये थे; पर कौरवों ने उनकी वात जत भान कर, शङ्कनि को अपना मंन्रशुरु बनाया, इस लिये श्रीकृष्ण ने उन्हें परामर्श देना चन्द्‌ कर दिया | गोपाल-तब तो उनका ऐसा करना उचित ही था । भाई गोविन्द तम्हारे साथ बात चीत करने से सने २ वातं समी अर्थात्‌ :--




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