श्रीमद्भगवदगीतार्थ - संग्रह | Shri Madbhagavadageetarth - Sangrh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपक्रम । &
गोपाल-ठीक द! पर शय सुमे यद सुनाश्रो कि श्रीकुष्ण
ने क्या कद कर श्रज्नुन को युद्ध मे प्रवृत्त
किया ।
गोविन्द-अच्छा ! कहता हूँ, खुनो।
गोपाल--किन्तु पहिले एक बात मुझे और समझा दो |
गोविन्द- क्या ?
गोपल-श्रीकृष्ण ने, साक्तात् परब्रह्म का भ्रवतार दो छर,
पाएडत्री हाँ का पक्त क्यों लिया ?
शोविन्द--भ्रीकृष्ण तो दोनों पक्ष बालों के सहायता देने
का तयार थे। तयार द्वीन थे किन्तु दोनों
दल वालों के। सहायता भी दौ थी । दुर्य्यो
धन के बल द्वारा ओर पाणएडवों को मंत्रणा
द्वारा !
ग्ोपाल-किन्तु ! इसमें भी तो श्रोकृष्ण का पक्षपात पाया
जाता हैं ।
गोविन्द--पाया जाय | किस्तु श्रोकृष्ण तो सबसे पहले
कौरवा के पास इनको मरणा दास सहायता
देने के लिये गये थे; पर कौरवों ने उनकी वात
जत भान कर, शङ्कनि को अपना मंन्रशुरु
बनाया, इस लिये श्रीकृष्ण ने उन्हें परामर्श
देना चन्द् कर दिया |
गोपाल-तब तो उनका ऐसा करना उचित ही था । भाई
गोविन्द तम्हारे साथ बात चीत करने से
सने २ वातं समी अर्थात् :--
User Reviews
No Reviews | Add Yours...