जलसाघर | Jalsaghar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मंजरी घोली--वाह, मैना तो बोल रही है खूब 1 तो हां, दुल्हन, क्यों
लही पसन्द हुई, कुछ जान सकी हो ?
गोपिनी ने फिर उसी विकोटी काटने के ही स्वर में कहा--मैं रसकली
लगाना जौ नही जानती, इयी से ।
मंजरी सब कुछ समझ गयी । इस बार हँस कर आशएचर्य की मुद्रा में
गाल पर हाथ रख कर बोली--हाय री अम्मा, इसी से वया ? तो मुझ से
“रसकली लगाना सीखोगी दुल्हन ?
--भिखाओगी ? देखो, ठीक तुम्हारी ही तरह होना चाहिए ।
--हाँ, सिखाऊँगी। लेकित धीरज रय सकोगी तो ?
“हाँ, रख सकूँगी। तुम्हारे पास समय कहाँ से होगा ? मैं कहती
हुँ, रसिको प्ते तुम्हे छुट्टी मिलेगी तब्र तो ?
“मेरे रसिकों की बात छोड़ो, वे तो अप्षमय भी आ कर समय दे
सकते हैं पर तुम्हारा रसिक तो एक क्षण भी तुम्हें नही छोड़, पाता, देख
रही हैं ।--मजरी ने कहा ।
--वह तो दो दिन की बात है, अभी तो नरम-नरम सोआ-पालक का
न री, बाद में बूढा वैल ठीक जगह ही जा कर चरेगा, डर को बात
नही है।
मंजरी ने थोडा झलक कर तीखेपन से कहा--तो भाई, वूढ़ें बैल को
बांध रखो, बस, जिस के पास पगहा नही हो तो उसे बैल पालने का शौक
क्यो?
गोपिनीभी कुला कर इस वार वोली--धोडा रहने प्रर क्या चावुक
की कमी होती है, री, नही । जव बैल पाल रखा है, तव पहा भया नही
सुधा ट मे कटती हूं कि सादी तो है, आंचल से वाँधूमौ 1
“-अगर तोड़ कर भाग जाये तो ? मजरी ने हंस कर कहा ।
“इस्स, उस के बूते की बात नही ! गोपिनी बोली ।
मजरी ने कहा--देखो ।
गोपिनो ने उसो दाम्भिक स्वर में कहा--तब नहीं होगा तो फड़े
“आँचल को गले में डाल कर झूल पड़ेगी, लेकिन अभी तो ज़िन्दे ही उसे गढ़े
“में ढकेल नहीं सकती।
रसकली €
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