जैन संस्कृत महाकाव्य परम्परा और अभयदेव कृत जयन्तविजय | Jain Sanskrit Mahakavya Prampara Aur Abhayadev Krit Jayant Vijay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. रामप्रसादत्रिपाठी - Dr. Ramprasad Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कृत के जैन महाकाब्यों की परम्परा | [ ६
में मान्य हैं। इनकी रचनाओ में किसी ब्रत का माहात्म्य या किसी भह्यापुरुष का
चरित्र-चित्रण मिलता है | कवि अभयदेव विरचित “जयन्त-विजय' महाकाव्य में
पञ्चपरमेषठी + नमस्कार के माहात्म्य का वर्णेन किया गयां है । भमरचनद्र सूरिने
पश्यानन्द' महाकास्य की रचनाकीहै जिक्षमे जैन तीर्थंकर ऋषभदैव का चरित्र
चिन्नित है । प्रस्तुत महाकाव्यका निर्माण पद्म मन्त्री की प्राथ॑ना पर किया गया ।
अत पष्मकोआर्नान्दित करनेके कारण ही इसका नाम 'पद्मानन्द' रखा गया।
इसी प्रकार इन्होने 'बालभारत' महाकाव्य को रचना वापट निवासी ब्राह्मणौ की
प्राथना परकी है जिसका कथानकं लोक-व्िश्रुत पाण्डदो.के चरित्र ते सम्बन्धित
है! इसी प्रकार देवानन्द सूरिकी आज्ञा पाकर देवप्रभसूरिने (पाण्डव चरित'की
तथा अपने गुरु जिनपालोपाध्याय की आज्ञा स चन्द्र तिलक उपाध्याय नै (अभय
कुमार चरित की रचना कहै । अमरचन्द्र मूरि, बालचन्द्र सूरि, उदयप्रभ सूरि,
माणिक्यचन्द्र मुरि भौर नयचन्द्र सूरि जैसे प्रमुख ववियोको भी राजाश्रय प्राप्त था ।
नयचन्द्र सूरि ग्वालियर नरेश वीरम देव के तथा अन्य कवि मर्जरेश्वर वीरधवल
वीसलदेव के महामात्य वस्तुपाल की विद्वन्मण्डली में थे। इन कवियों को धन का
लोभ नहीं था फिर भी इन्होंने अपने आश्रयदाता प्रभुओ का गुणगान किया तथा उन्हें
आये महाकाव्य का नायक बताया ।
धामिक भावना-- जैन कवियों का प्रमुख लक्ष्य जैन धर्म का प्रचार एव प्रसार था ।
अत उन्होने धार्मिक चेतना एव भक्ति-भावना से प्रेरित होकर महाकाव्यो की रचना
की । उनकी इस भावना कौ अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं मे स्पष्ट परिलक्षित होती है ।
दस प्रकार जैन केवियोका एकं ओर नक्ष्य स्वान्न सुखाय काव्य की रचना करना
था तथा दूमरी ओर उसके माध्यम से जनसाधारण मे जैन धर्म के प्रति आस्था
उत्पन्न करना धा) इसीलिए उन्होंने सरल से सरल भाषा में अपने सिद्धान्तो का
प्रतिपादन किय। | उनका साहित्य विद्वद््य के लिए ही न होकर जन-सामान्य के
लिए है । उन्होने जैन धर्म के जटिल सिद्धान्तो का प्रतिपादन न करके अहिसा, सत्य,
जस्तेय ब्रह्मचर्यं आदि पर विशेष बल दिया है । उनके प्रेमाख्यान काव्य मे भी
धामिक भावना की स्पष्ट छाप है। महाकाव्यों का प्रमुख लक्ष्य भी यही है। इस
प्रकार जैत सस्कृत महाकाव्यों के निर्माण मे धामिक भावना की अभिव्यक्ति का
प्रमुख लक्ष्य रहा है ।
पारस्परिक गरछोय स्पर्धा - जैन महाकाव्यों के निर्माण मे पारस्परिक
गच्छीय स्पर्धा भी प्रेरणा-स्रोत रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जैन धमं
आरम्भसे ही विंभिन्न गच्छो मे विभाजित हो गया था। यथा --चन्द्र गच्छ, नागेन्द्र
१. कवि अभयदेव, जयन्तविजय, तृतीय सरमे)
२ कवि अमरचन्द्र सुरि, पश्चानन्द महाकाव्य, १६।६१
User Reviews
No Reviews | Add Yours...