मोहनदास करमचंद गांधी : एक प्रेरक जीवनी | Mohandas Karam Chand Gandhi : Ek Prerak Jivni

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Book Image : मोहनदास करमचंद गांधी : एक प्रेरक जीवनी  - Mohandas Karam Chand Gandhi : Ek Prerak Jivni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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य जन्मभूमि ओर परिस्थिति 11 खाना नदे पातीं, तो वाखरा ओौर दही खाकर - मोनिथा पाठणाला चला जाता । बचपन से ही समय का पावन्द था । घर से सीधे पाठ- शाला और पाठशाला से सीधे घर आना मोनिया का नियम था । मभोनिया अपने संकोची स्वभाव के कारण सहपाठियों के साथ भी बहुत कम मिलता-जुलता था । संयोगवश किसी समवयस्क वालक से मित्रता हो जाती, तो मोनिया उसे मन से निभाता । एक वार अपने मित्त को आम खाने का न्यौता दिया । दावत के एेन दिन न्यौते हए मित्र को स्मरण दिलाने की याद नहीं रही । आम-रस की दावत में मित्र शामिल न हो सका । अपनी भूल के लिए मोनिया ने पश्चाताप- वश उस साल आम न खाने की प्रतिज्ञा की । मित्र ने और घर के बड़ों ने समझाया-बुझाया, लेकिन मोनिया अपनी प्रतिज्ञा पर दढ़ रहा स्कूल में निरीक्षण के समय, इंस्पेक्टर से आंख वचाकर, शिक्षक ने किसी शब्द को गलत से ठीक लिखने का संकेत दिया । लेकिन नकल करना मोनिया को स्वीकार न था। विशेष वात यह है कि शिक्षक के विषय में भी निरादर की भावना मन में न जाने दी । वाल्यकाल में भी मोनिया का नियम था कि बड़ों के दोषों की ओर न देखना चाहिए परिश्रम ओर रटन्त से बचने के लिए हाई सकल के छात्र मोहनदास करमचंद गांधी ने संस्कृत से पल्‍ला छुड़ाने की ठानी । संस्कृत के अध्यापक ने समझाया कि संस्कृत से कतराता अपनी संस्कृति से हाथ धो लेना है। प्रोत्साहन का अच्छा प्रभाव पड़ा। और जब मोहनदास के प्रति अध्यापक ने पूर्ण विश्वास व्यक्त किया, भरोसे का बोझ डाला, तो मोहनदास ने अभ्यास और अध्यवसाय से उत्तीर्ण होना अपना कत्तंव्य समझा । अपने विवाह के कारण फेल होने से स्कूल में एक वर्ष खो दिया था, अब एक साथ दो कक्षाएं पार कर क्षति-पू्ति कर ली। इस सफलता से आत्मविश्वास बढ़ गया । वह अपने शिक्षकों के प्रति विनीत थे, पढ़ाई पर पूरा ध्यान देते थे। उन्होंने स्वयं को मामूली विद्यार्थी कहा दै । किन्तुं एक वार




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