स्वर्णोपदेश | Swarnopadesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जोवनके लच्य | ११ পা জা উপ শা ও কন সা শা সপ पान- पक कनम, সস ৯ পপ অসি যর পি পি সা পি न “নী पास एकं फरिण्ठा ई, जो सदा मैरे इवमके सुताचिक काम करता है , परी्ताओमें सफलता मो मुफ़उसोकर हारा प्राप होती है। मेरे उस फरिशते का नास है 'सन-धिजय ।” मेरे उन सिठने फिर पृष्ठा-- तुम छसो तो नहीं करते ? क्यीकि- फरिशते आदमीके पास आना पसन्द नहीं करते।” मैने कहा,-- হি न आते होते,तो मेरा फरिश्ता मेरे पास केसे आया १ यह फोई बड़ो बात नहीं; यदि आप चाहें, तो वह आपके पास भी आसकता है। पर कुछ दिनों तक उसकी आराधना करनी पड़ियी।” सित्र योले,--“किस तरहकी आराधना करनो पड़ेगी १” मैंने कहा,--“कषेवल चित्तको सयत रखनेकी । इस चिन्त-संयमसे मरुण्य बहुत भोप्र अपने कार्मोमें सफलता प्राप्त ऋर लेता दै। इसोको दूसरे शब्दोंमें मन-विजय कहते हैं। मैने एसी 'सन- विजय! नासक फरिश्तेकी সাহাঘলা জী है।”. --फालांइल | ( १ ) वर्तमान युग विगेपन्नो का युग ই । ग्राजकलकी प्रधान समस्या यह है, कि एक एप्विन किस तरह दश घोड़ोंको शक्षि प्राप्त करे, पर साथहो शर्त यह है, कि वद्ध एक घोड़े की भाति एकरौ एस्निनका अधिकार प्राप्र करे। दूसरे शब्दोमें, थ्राजकनलकां ममान एक भादमौये टय श्रादमिर्योकी भक्तिकौ प्रत्याथा करता है। जो व्यत्त किसी एक विपये असाधारण छतित् दिष्ठा सकता &, खमाज उसीके गेम जवमारय पद- नातनेके लिये प्रग्तुत रहती है।




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