तुलसी साहित्य सुधा | Tulsi Sahity Sudha

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Tulsi Sahity Sudha by डॉ. भागीरथ मिश्र - Dr. Bhagirathi Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प २० | सुसौ साहिल बुधो सुनि सहमे परि पाईं, कहत भए दंपति । पग्रिजहि लागि हमार जिवव सुख संप्ति नाथ कहिय सोइ जतन मिट॒इ जेहि दूधतु ।' दोषदलमु' मृनि कहेड वालं विधुभूषनु' ॥5॥ বল অধর वा सुनकर दम्पत्ति लहम गये और पैरों पड़कर वोले--- मिना पर हमारा सुब, सम्पत्ति और जीवन निर्भर है। हैं स्वामी, ऐसा यत्नः कहो भिद यह, दीप मिल जाये ।' मुनि बोले कि दप का निवारण करगे वलि मस्तक पर वालचन्दमा का भाश्रूयण पहनने वाल शंकर हैं 1 अवसि होइ सिधि, साहष फवै सूप्राधन 1 कोरि . कलपतर सरिस संभु अवराघन ! जनति जनक उपदेस महेसहि सेवहि। अति आदर अनुराग भगति मन भेवहिं ॥१०॥ सरल भर्थ--साहस और साधन से फल मिलता है यतः अवश्य सिद्धि होगी 1 शंकर की आराधना करोड़ों कल्प वृक्षों के समान होती है। अतएवं माता-पिता की आजा से फन्या अच्यन्त आदर, प्रेम सौर भक्ति भं मग्न मन से महेश की सेवा करे 1 देव देखि भल समझ मनोज बलाय । कहेउ करिय सुरकाजु, साजु स्ि धायउ | उमा नैह वस विकल देह सुधि बुधि । ॥ केलञप वलि बेन वृत विषम हिम जनु हद्‌ ।।११।। सरल अर्य--देवताओं ने भला समय देखकर कामदेव को बुचाया और कहा कि देवतादों के कार्म के लिए साज-सज्जा के साथ जआाओ। इधर उमा की देह विहल हो गयीतश प्रेम के कारण सुधि-बुधि जाती रही बैसे कि वंत में बढ़ती हुईं कल्पलता भयंकर पाले से मुरक्षा गयी हो ॥ समाचार सव सिन नाद्र घर घर कहे। सुनत मातु पितु परिजन दारुन दुख दहे। जाई देलि अति प्रेम उमहि उरलावहिं। - दिलपहिं बाम विधाततहि दोष लगावहिं ॥१९॥ सरल अर्य--स्ियों मे सभी समाचार जाकर घर-घर कह दिये जिन्हे सुनकर माता-पिता मौर द्वी भरवकर दुःख से पोहति दए 1 थे जाकर देखते हैं और ` रेरा को हृदय से लगाते हैं। विलाप करते है और कुटिल्ष बिधाता को दौप लगाते हैँ ॥ फिरेड मातु पितु परिजन लखि गिरिजापन | मेहि जुरा लागु चितु सोई हितु यापन ।




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