क्या खोया क्या पाया | Kya Khoya Kya Paya

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Kya Khoya Kya Paya by रामेश्वर तांतिया - Rameshwar Tantia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ७ - शायद उनकी पैनी सूझ बूझ के कारण उन्हें सफलता मिलती रही। वस एक क्षेत्र फाटको ही ऐसा था कि सही सोचने पर भी गत हो जाते, घाटा उठाते। इसके लिए अपने स्त्रभाव की अधघीरता और जल्दीबाजी को उन्होंने कारण वत्ताते हुए अपनी दुवंठता को स्वीकारा है। साथ ही, अपनी मानसिक एवं शारीरिक अस्वस्थता के लिए भी इसी को कारण माना हैं। ं हि जीवन को समझने की उनकी जिज्ञासा अन्त तक वनी रही। उपलब्धियों का बनुशीरन और देष तक चलता रंहा। हमेशा वे विचारते कि मैंने क्या खोया, क्या पाया, क्या खोना चाहिए था और क्या पाना चाहिए थी। अपनी यहीं भनुभूतियाँ और उपलब्धियाँ डायरियों में उन्होंने छिखीं, इनसे निःसन्देह प्रेरणा मिलती है। डायरियों की भाषा, शैठी और घटनाएँ यथावत्‌ हैं। भाषा में .कहीं-कहीं राजस्थानी विधा है, किन्तु इससे प्रवाह में वाघा नहीं आती वल्कि लेखक का निजी व्यक्तित्व उभरता है। शुरू के वर्षों की तुलना में वाद के वर्षों की भापा मंँजी हुई लगती है, यह स्वाभाविक है। डायरियों को फकिचितु सावधानी एवं सूक्ष्म दृष्टि एवं रुचि के साथ पढ़ने पर एक साधारण व्यक्ति की असाधारण निप्ठा, क्षमता, ममता एवं अध्यवसाय का परिचय मिल सकता हैं। अच्छा होता यदि इन डायरियों की जानकारी उनके जीवनकालू में हो जाती। किन्तु डायरियों का जिक्र उन्होंने कभी किया नहीं। श्री टांटिया के देहान्त के वाद पता चला कि सन्‌ १९४१ से १९७७ तक की प्राय: सब डायरियाँ हैं। इसके पहले की भी रही होंगी वयोंकि सन्‌ १९३२ की भी डायरी मिली और वाकी कहाँ हैं, इसका पता नहीं चला। इस वीच श्री टांटिया के मित्रों ने उनकी स्मृति में एक ग्रत्थ का निणणय छे लिया था किन्तु डायरियों का पता चलते ही और उन्हें पढ़ने पर विखरे मोती मिले जिन्हें एक सूत्र में पिरो देने को प्राथमिकता देना आवद्यक समझा गया। उनके सुपुत्र श्री नत्दलाल टांटिया ने प्रकादान में दिलचस्पी ली और दिखलाई। कि थी वालकृष्ण गर्ग, टांटियाजी के जीवन काल से ही उनकी रचनाओं की प्रेंस कापी तैयार करते थे और उनका सुद्रण, प्रकाशन कराते थे। रामेदवरजी के निधन के बाद भी उसी लगन के साथ इन डायरियों का संकछन, सम्पादन और प्रेस कापी तैयार करने में जगे रहे। उनके अटूट श्रम और मिष्ठा के बिना ये 'डायरियाँ' इस रूप .में प्रस्तुत नहीं हो पातीं। इसके छिए वह धन्यवाद के पात्र हैं। _ आदरणीय रायकृप्ण दास, डा० हजारीप्रसाद ट्िवेदी, श्री भागी स्थ कानोडिया, थी सीताराम सेकसरिया, श्री प्रमुद्याल हिंम्मतसिहका; श्री कन्हैयालाल सेटिया तथा भी केडिया ने डायरी के प्रकाशन के लिए श्री नंदलाल टांटिया को उत्साहित किया औौर प्रेरणा दी है। सस्पादन कार्य में श्री विश्वनाथ मुखर्जी, वाराणसी के प्रमुख तागरियीं




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