भारतीय नेताओं की हिंदी सेवा | Bhartiya Netayo Ki Hindi Sewa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
77 MB
कुल पष्ठ :
475
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-प्रवेश
इस शोध-प्रबन्ध में ली हुई सौ वर्ष की अवधि हिन्दी भाषा और साहित्य _
के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण अवधि है। सौ वर्ष किसी भी जीवित और प्रचलित
भाषा को उन्नत करने के लिए पर्याप्त होते हैं और वास्तव में इस शताब्दी में
हिन्दी-समेत भारतीय भाषाओं ने अप्रत्याशित प्रगति की हैं। यदि यह संभव हो
. कि उन्नीसवीं शती के पूवद्धिं का कोर व्यक्ति हिदी के आज के विकसित स्वरूप का
अवलोकन कर सके, तो निस्संदेह वह चकित हए बिना नहीं रह् सकेगा ! जो भाषा
विगत शताब्दी के मध्य तक सब दिशाओं व सब विषयों में अभिव्यक्ति का मार्ग ढूंढ़
रही थी और जिसके गद्य को आगे बढ़ाने के लिए अधिकतर देश के गौरवमय अतीत
की एक झलक और तत्कालीन परिस्थितियों से उत्पन्न भावना तथा महत्वाकांक्षा
ही थी, जिसकी गद्य-शैली अभी शैशवकाल में प्रवेश किया ही चाहती थी, वह भाषा
साहित्यिक दृष्टि से किसी भी अन्य समृद्ध मानी जानेवाली भाषा की भांति आज
समुन्नत है और सामाजिक व राजनीतिक दृष्टि से उसने एक महान देश के दीर्घ-
कालीन सफल स्वाधीनता-आन्दोलन का भार वहन किया हैं तथा आज वह इस
बहुभाषी भूखंड को एक गणराज्य रूपी एकता के सूत्र में पिरोने की क्षमता रखती है ।
...._ यह समझना गलत होगा कि इन वर्षों में यह प्रगति हिन्दी ने ही की है ।
जनजागरण के अनुकूल वातावरण में सभी भाषाएं पली और फली-फूली है ।
संभव ह उनमें से कतिपय भाषाओं ने हिन्दी से भी अधिक पुष्टि पाई हो, परन्तु
कम-से-कम व्यापकता की दुष्टि से हिन्दी ही सबं जगहं सबसे पहले पहुंच पाई हें ।
` हिन्दी-साहित्य का कोई भी विद्यार्थी अथवा इस भाषा का कोई भी हितैषी यह
दावा नहीं करेगा कि साहित्यिक सौष्ठव का एकाधिकार हिन्दी को ही मिला है
अथवा और कोई भी भाषा इससे अधिक समृद्ध नहीं हो पाई है। किन्तु फिर भी ..
हिन्दी का रूप सार्वदेशिक है और इसके भविष्य का हित-चिन्तन एक राष्ट्रीय
प्रश्न माना जाता है, तो उसके कुछ कारण हैं । वे ही कारण हिन्दी की विशेषता
हैं, जिन्हें हृदयंगम किये बिना हिन्दी के महत्व को अथवा उसके विकास-क्रम को
समझना असंभव हैं । इसलिए उस विशेषता का सविस्तर विवेचन अनिवार्य है ।
आधुनिक युग की अनेक सुविधाओं, जैसे मुद्रण, विज्ञान की प्रगति,
पादचात्य ज्ञान का संसर्ग और पारस्परिक प्रभाव, रेल तथा यातायात की अन्य
सुविधाओं के कारण देश-विदेश के लोगों का सहज संपर्क, सामाजिक तथा राज-
तीतिक विचारधारा में उथलू-पुथल व परिवर्तन, सार्वजनिक शिक्षा की परि
ह ্ कं 85 । ।
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