छाया के स्वर | Chaya Ke Svar

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Book Image : छाया के स्वर  - Chaya Ke Svar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ नदी किनारा, तरु की छाया सिर मेरा, श्रौ गोद तुम्हारी ! देख रहा भीगी बालू पर, अंकित चरणों की रेखाएं, जो हम तक भ्राकर रुकती हैं : ये उँगलियाँ प्यारी - प्यारी, खेल रहीं मेरे बालों से, उलभी - उलभी लट सुलभाएँ ! सोच रहा हूँ में अतीत पर, अंकित हैं जिस पर घटनाएँ, भ्राज हमे जो होड गदं ह, जीवन कौ सरिता के तट पर। नया निमंत्रण बोल रहा है, इस सरिता की लहर - लहर पर; आग्रो ! थोड़ी देर और हम, श्रांत, दग्ध मन को बहलाएँ। पीले गत, सामने अनागत : लगता वतमान ही सुखकर । चरणो की रेखाश्रों जंसी, लगती ই गत. की पीड़ाएँ। ओर अनागत में सुख ? यह अ्रनकही व्यथा के सहश निरन्तर उकसाता है हमें ! बुलातीं प्रतिपल हमको विकल तृषाएँ ! तब-धीरे से मुक जने दो मृदु ग्रीवा मेरी बाहों से ! जाने कब पुकार ले कोई लहर अनागत की राहों से ?




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