राष्ट्र के कर्णधार | Rashtra Ke Karan Dara

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Rashtra Ke Karan Dara by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# महात्मा गाँधी #% ११ ^~ ^~ ^~ ~~~ ~^ ~~~--~~~^ ^~ সি পাস, फिर राजकोट अये ओर वहसे बम्ब जाकर पुनः बेरिस्ट्री शुरू कर दो, लेकिन कुछ ही दिन वाद ही अफिकासे उनकी बुलाहट आई ओर अपने परिवारको यहीं छोड़कर वे वहाँके लिये रवाना हो गये । १६०३ की १ जनवरीको वे प्रिटोरिया पहुंचे ओर श्री चेम्बरलेनसे मिलनेवाले भारतीय डेपुटेशनमें सम्मिलित हुए। उसी साल इन्होंने 'ट्रान्सवाल ब्रिटिश इण्डियन एसोसियेशन! कायम किया मोर दक्षिण अफ्रिकाके भारतीयोंकी समस्याओं पर प्रकाश डालने मौर उनकी उनन्‍्नतिके लिए आन्दोलन करनेके विचारसे 'इण्डियन ओपी- नियन! नामक अंग्रेजी पत्र॒ निकछना शुरू किया। अगले साल जोहान्सवर्गमें जोरोंका प्लेग फेछा | गाँघीजीने म्युनिसीपेलिटीसे वार-वार अनुरोध किया, लेकिन भारतीय मुहल्छेकी सफाई की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया | फिर आपने अपने साथियोंके साथ सेवा-सुश्रूपाका कार्य शुरू कर दिया । १६०६ में जूल-विद्रोह हुमा, उसमें भी. इन्होंने एक संगठित सेचा-दुलके साथ सम्मिलित होकर प्रशंसनीय कार्य किया । इस सेवा-कार्यसे छोट कर गाँधीजीने आजीवन प्रह्मचर्य-ब्रत पालन करनेकी प्रतिज्ञा की और अपने रहन-सहनको और भी सादा वना दिया ] गौँधीजीने सार्वजनिक सेवा-कार्यके साथ-साथ स्वाध्याय 'और झात्म-शुद्धिके प्रयोग भी शुरू किये और तरहसे इन्होंने तपस्वीका जीवन अंगीकार कर लिया । इण्डियन ओपिनियन! के दफ्तरमें काम करने घाली मिस डिक और मिस इलेशिना आदि गोरी नवयुव॒तियों के आचार-न्यवहार पर गाँवीज्ञीके त्यागपुर्ण




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