सम्मेलन - निबंध - माला भाग - 2 | Sammelan Nibandh Mala Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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No Information available about गिरिजादत्त शुक्ल 'गिरीश' - Girijadatt Shukl 'Girish'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
লী रिपोर्ट सरकार को दी उससे प्रसन्न ट्वोकर सरकार ने दूसरे
वर्ष सहायता की रकम ४००) से बढ़ाकर ५००) कर दी । सच्
१९६६ से यद सहायता १०००) वापिक कर दी गड । अन सन्
१६२२ स गदनेमेन्ट इस काम के लिए २०००) वापिक दैती हे ।
इस खोज के काम से २२ उपो मे सेकड़ो अज्ञात कवियो ओर
हजारो अप्रकाशित थब्धों का अन्धकार के गभ से प्रकाश में लाने
का श्रेय सभा को है। खोह् के काम को बाच श्यामघुन्दरदासं
ओर परणिडित श्यामचिहारी सिश्र ने कई व्ष तक चलाया। अब
राय बहादर हीरालाल के तत्त्वाधान से यह काम हो रहा है ।
खोज के काम की कई रिपोट प्रकाशित हो चुकी है। प्रथम कई
वर्षा' के काम का एक संक्षिप्त चिवरण हिन्दी में भी प्रकाशित
किया गया है।”
वर्णुनात्मक निचन्ध से किसी व्यक्ति अथवा वस्तु विशेष के
किसी अंश अथवा सम्पूण अंश का वणन किया जाताहै।
निम्नलिखित पंक्तियों से इसका उदाहरण देखिए ;-७«
“আভা हमारे कसे-शक्ति विषयक अज्ञान को ही दर नहीं
करता, बल्कि वह हसे आध्यत्मिकवाद की ओर अग्नसर करता हैं।
कर्मवाद हमे बतलादा है कि हमे ज्ये यह् दृश्यमान जगत दिख-
लाई देता है, सब मिथ्या है। यह अज्ञान और अविद्या का ही
कारण है कि जीव अपने सच्चित् ओर आनन्दसय स्वसाव को
छोड़कर पर पदाथों से हर ओर विषाद की बुद्धि करता है।
इस अनादिकालीन अविद्या के ही कारण मनुष्य से तृष्णा का
; प्रादुर्भाव होता है। कमेवाद हमे जड़ ओर चेतन से विवेक,
/ ख्याति पैदा करने की शिक्षा देता है । तथा यह आत्मा के असली
/ भाव--बह्म-साथ को प्रकट करता है। उपनिषद् के शब्दो मे जब
# यह आध्यत्मिकवाद पराकाष्ठा को पहुँचता है, तब 'हृदयः की
£ सब ग्रन्थियाँ छिन्न-भिन्न हो जाती हैं, संपूणण मन के सशय नष्ट
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