संस्कृति संगम | Sanskriti Sangam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ভুলি জাজ प्रवर्तन किया है | निबंधकारों ने बाहर से लाकर समाज के सिर पर नूतन व्यवस्थाएँनहीं लादीं बल्कि भीतर से लेकर उन्हें शास्र-पूतबनाया। यही कारण है कि सारे देश ने उन्हें आन्तरिकता के साथ स्वीकार किया | देशाचार और शिष्टाचार के साथ इन निबंधकारों का केसा संबंध रहा है, यह दिखाने के लिए. नीचे कुछ मनोर॑जक विवरण दिए जा रहे हैं । मदनपारिजात नामक , निबंधन्अंथ चोदहवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में लिखा गया था | इसके लेखक विश्वेश्बर भट्ट पेदिभट्ट के पुत्र थे और व्यासाराण्य मुनि के शिष्य थे। इनका गोत्र कौशिक था । दिल्‍ली के उत्तर में यमुना नदी के किनारे काष्ठापुरी में टाका-वंशीय राजा मदनपाल के आश्रय में यह अंथ लिखा गया था। अन्थकार ने अत्यन्त सावधानी से यह ग्रंथ लिखा था। बड़े यत्नपृ्वक इसमें मिताज्ञरा का अनुसरण किया गया है ओर एक भी दक्षिणी आचार नहीं आने दिया गया है। देशाचार ओर स्थानीय शिष्टाचार के ग्रति इतनी सावधानी दिखायी गयी है कि ग्रंथकार के स्वदेशीय आचार इसमें एकदम नहीं मिलते । समूचे उत्तर भारत में यह ग्रंथ आहत होता है | दूसरी ओर, बहुत से दक्षिण देशीय ब्राह्मण काशी मेंब्बस गए थे । शिव-प्ूजा-विघयक लिग प्रतिष्ठा-विधि क रचयिता नारायण भट्ट के पिता रामेश्वर भट्ट का वंश दक्षिण से आकर काशी में बस गया था। दामोदर के पुत्र गौरीश भट्ट का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने काशी में ही अध्ययन किया था। सन्‌ १६०६ ई७ में अकबर के दरबार में ये सम्मानित हुए ये अ्रनन्त-पुत्रराम देवज्ञ ने १६००-१६०१ ই০ में मुहुत्त-चिंतामणि की ओर नीलकंठ ने व्यवहार-मयुख कौ सचना की थी | इनका पुराना निवास विद या बरार में था । महाराष्ट्र के चित्पावनवंशीय गोपाल के पुत्र विश्वनाथ ने काशी में ही सन्‌ १७३६ ई७ में बरत-प्रकाश नामक गअंथ लिखा । रल्ममाला के रचयिता कृष्णुमट्ट




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