भगवत - ज्ञान - रत्न | Bhagwat Gyan Ratna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31.2 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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( ८ )
सेवा किसी से न कराना । अपना शारीरिक काय॑ अपने आप
करना । अच्छे वस्त्र रखने से लोग कष्ट भी देते हैं और वस्त्र भी
हर लेते हैं। इससे साधू ऐसा वस्त्र रक््खे कि जो अपना काम तो
पूरा दे और चाहे जहाँ छोड़ दे, कोई भी न छुवे ।
कुछ समय पाठ में, कुछ विचार में श्रोर कुछ इंश्वर चिन्तन
में तथा उणा-गुण के विचार में बिताना । कुछ समय कंथा सुनने
में, कुछ समय लिखने में; कुछ शरीर यात्रा में ऐसे सब समय
बिताना । परन्तु समय व्यथ नहीं खोना किन्तु शुभ विचार तथा
शुभ कायेंमें ही व्यतीत करना चाहिये ।
पुजक्कड़ों से सदा दूर रहना । किसी की प्रारब्ध में क्यों
शामिल होना । छापने पुरुषाथं से अपने शरीर का निवांद
करना |
'भिक्षा आपने शासन पर
करना-विचार तत्काल फल
दायक है; एक ही अ्न्थ
को बार-बार विचारना-
शास्त्र आज्ञा पालन; टेप
निषेध |
साधू ऐसा सामान कभी न रकक्खे जिसकी चिन्ता करनी पढ़े ।
भिक्षा से अपना निर्वाह करे । सिक्षा बिना और किसी पदार्थ की
याचना कभी न करे । क्योंकि पदार्थों की याचना ही पुरुष को
दीन बनाती है । शिक्षा राम से ले के अपने आसन पर एकांत में
पाना चाहिये । जप तो कालान्तर में फल देता है और विचार
तस्काल फल देता है। इससे शास्त्र का खूब विचार करना ।
' एक ग्रन्थ को इष्ट कर लो । उसी का बारम्बार विचार
करो । उसी से सब कुछ होगा । बहुत श्रन्थ देखने से लाभ नहीं ।
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