जातक (खंड -2) | Jataka Khand-II
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
481
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भदंत आनंद कौसल्यायन -Bhadant Aanand Kausalyayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६५
१६६
१६७
ইন
[{ श्ट ]
विषय पृष्ठ
पब्यतूपत्यर जातक २५६
[राना कौ खनी को उसके भ्रामात्य ने दूषित कर
হিদা। राजा वे विचार वर दोतो को क्षमा कर दिया । ]
बालाहस्स जातक २६१
[यक्षिणियाँ व्यापारियों को फरेसाकर यक्ष नगर ले
जाती। पाचि सौ व्यापारी उनके चगुल म फंस गए । ज्येष्ठ
व्यापारी को पता लगा कि यह यक्षिणियाँ हैं। उसने सब को
भाग चलने को कहा। ढाई सौ व्यापारी ज्येप्ठ व्यापारी
का कहना भाने वच निकले । कहना न मानने वाले दो
ढाई सौ व्यापारी यक्षिणियों के भाहार बने 1]
मित्तामित्त जातक २६५
[मित्र या अमित्र कँसे पहचाना जा सकता है ? ]
राप जातक २६७
[ पोटूपाद नै ब्राह्मणौ को दुराचारसे विरत रहने का
उपदेश दिया । उसने विचारे तौते कौ गरदन मरोड उत्ते
चूल्हे में फेंक दिया।]
१६६ गहपति जातक ३००
[ द्राह्मणी और गांव का मुखिया मिलकर ब्राह्मण को
धोखा देना चाहते थे। वे अपने दुराचार को न छिपा
सके । ]
२०० साघुत्तील जातक ३०३
[ एक ब्राह्मण की चार लडकियाँ थी ) उसने श्राचार्य्य
से पूछा--लडकियाँ किसे देवा योग्य है २]
६. नतंदच्ड वर्ग ३०६
२०१ बन्धनागार जातक २०६
[पुत्र दारा का चथन सब से बडा वन्धन है! ]
User Reviews
No Reviews | Add Yours...