जातक (खंड -2) | Jataka Khand-II

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Jataka Khand-II by भदंत आनंद कौसल्यायन -BHADANTA AANAND KOSALYAYAN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६५ १६६ १६७ ইন [{ श्ट ] विषय पृष्ठ पब्यतूपत्यर जातक २५६ [राना कौ खनी को उसके भ्रामात्य ने दूषित कर হিদা। राजा वे विचार वर दोतो को क्षमा कर दिया । ] बालाहस्स जातक २६१ [यक्षिणियाँ व्यापारियों को फरेसाकर यक्ष नगर ले जाती। पाचि सौ व्यापारी उनके चगुल म फंस गए । ज्येष्ठ व्यापारी को पता लगा कि यह यक्षिणियाँ हैं। उसने सब को भाग चलने को कहा। ढाई सौ व्यापारी ज्येप्ठ व्यापारी का कहना भाने वच निकले । कहना न मानने वाले दो ढाई सौ व्यापारी यक्षिणियों के भाहार बने 1] मित्तामित्त जातक २६५ [मित्र या अमित्र कँसे पहचाना जा सकता है ? ] राप जातक २६७ [ पोटूपाद नै ब्राह्मणौ को दुराचारसे विरत रहने का उपदेश दिया । उसने विचारे तौते कौ गरदन मरोड उत्ते चूल्हे में फेंक दिया।] १६६ गहपति जातक ३०० [ द्राह्मणी और गांव का मुखिया मिलकर ब्राह्मण को धोखा देना चाहते थे। वे अपने दुराचार को न छिपा सके । ] २०० साघुत्तील जातक ३०३ [ एक ब्राह्मण की चार लडकियाँ थी ) उसने श्राचार्य्य से पूछा--लडकियाँ किसे देवा योग्य है २] ६. नतंदच्ड वर्ग ३०६ २०१ बन्धनागार जातक २०६ [पुत्र दारा का चथन सब से बडा वन्धन है! ]




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