यशोधरा जीत गई | Yashodhara Jit Gai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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সস, পো আল
उसी का हरण करके दिखा दूंगा |
- स्त्रियाँ खूब खिलखिला कर हँस दी थीं | उन्होंने कहा था : तात् | अभी
से ह्ण करना प्रारम्भ कर दे न ? देख यह रही एक )
পিপিপি সির + এট
उन्होंने एक नो साल की लड़की को दिखाया था। मज़ाक से भप कर
सिद्धार्थ उस समय पुरुषों में चला गया था । वहाँ पुरुषों में सिद्धाथ को कोई
महत्त्व नहीं दिया गया था । वहां वह छोय था। नये विचारक सिद्धा्थ की
कच्ची बुद्धि ने नये नये प्रतिबिंब ग्रहण किये थे। ओर उसे नया नया ज्ञान
कुछ विचित्र सा लगता । पूण युवती दासियाँ उसे अच्छी लगतीं। और उसने
अनुभव किया कि स्त्रियाँ मी परस्पर जब मिलती हैं तो वैसे ही पुरुषों के बारे में
~ रस ले लेकर बातें करते हुए नहीं भेंपती, जैसे पुरुष आपस में मिलते समय
स्त्रियों की बातें करते हुए नहीं फिफ्कते, नहीं अधाते | इनमें परस्पर आकषेण
क्यों होता है !
वह सोचता ! और जब युवती दासियां सिद्धार्थ को स्नान करार्तीं तब
सिद्धाथ को वह स्पर्श अच्छा लगता । उसकी देह सुगठित थी। उसे शिक्षिक
व्यायाम सिखाते, अ्रस्त्र शत्र चलाना सिखाते, प्रासाद के विशाल वन की पृष्ठ
भूमि में वह तुरंग पर चढ़ कर हिंख पशुओं का आखेट करता । शिकारी कुत्तों
भोंकते रहते, श्रगी बजा करती, सिद्धाथ भपटता, ओर बह सब ऐसे ही
बीत गया ।
उते याद् नहींश्रारहा है कि कब वह बड़ा हुआ और कव वह सुन्द्रियोँ
नत्त कियाँ टसके मन को आहल्हादित कर गई | राजकुलों की मर्यादा यह
भी तो थी !
. महाप्रजापती गोतमी को मालूम हुआ था | उन्होने राजा शुद्धोदन को
. सूचना दी थी ; आय्य ! बधाई है !!
| ष्क 2
“पुत्र पुरुष हुआ |
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