यशोधरा जीत गई | Yashodhara Jit Gai

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Yashodhara Jit Gai by रांगेय राघव - Rangaiya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क $ 0 সস, পো আল उसी का हरण करके दिखा दूंगा | - स्त्रियाँ खूब खिलखिला कर हँस दी थीं | उन्होंने कहा था : तात्‌ | अभी से ह्ण करना प्रारम्भ कर दे न ? देख यह रही एक ) পিপিপি সির + এট उन्होंने एक नो साल की लड़की को दिखाया था। मज़ाक से भप कर सिद्धार्थ उस समय पुरुषों में चला गया था । वहाँ पुरुषों में सिद्धाथ को कोई महत्त्व नहीं दिया गया था । वहां वह छोय था। नये विचारक सिद्धा्थ की कच्ची बुद्धि ने नये नये प्रतिबिंब ग्रहण किये थे। ओर उसे नया नया ज्ञान कुछ विचित्र सा लगता । पूण युवती दासियाँ उसे अच्छी लगतीं। और उसने अनुभव किया कि स्त्रियाँ मी परस्पर जब मिलती हैं तो वैसे ही पुरुषों के बारे में ~ रस ले लेकर बातें करते हुए नहीं भेंपती, जैसे पुरुष आपस में मिलते समय स्त्रियों की बातें करते हुए नहीं फिफ्कते, नहीं अधाते | इनमें परस्पर आकषेण क्यों होता है ! वह सोचता ! और जब युवती दासियां सिद्धार्थ को स्नान करार्तीं तब सिद्धाथ को वह स्पर्श अच्छा लगता । उसकी देह सुगठित थी। उसे शिक्षिक व्यायाम सिखाते, अ्रस्त्र शत्र चलाना सिखाते, प्रासाद के विशाल वन की पृष्ठ भूमि में वह तुरंग पर चढ़ कर हिंख पशुओं का आखेट करता । शिकारी कुत्तों भोंकते रहते, श्रगी बजा करती, सिद्धाथ भपटता, ओर बह सब ऐसे ही बीत गया । उते याद्‌ नहींश्रारहा है कि कब वह बड़ा हुआ और कव वह सुन्द्रियोँ नत्त कियाँ टसके मन को आहल्हादित कर गई | राजकुलों की मर्यादा यह भी तो थी ! . महाप्रजापती गोतमी को मालूम हुआ था | उन्होने राजा शुद्धोदन को . सूचना दी थी ; आय्य ! बधाई है !! | ष्क 2 “पुत्र पुरुष हुआ |




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