तुलनात्मक भाषा शास्त्र और भाषा विज्ञान | Tulnatmak Bhasha Shastra Or Bhasha Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न मल ढ ड दि यम विकासें सर कक झ् जन हकन एक भाषा कि ऋ दर किक भ् - 7 भाषा तू उ न ड ऋू जी शध बरी लत चोलने की शक्ति स्वासाविक होने पर सी साधा छापने सिद्ध रूप सें...5. किसी को स्वतर्थसिद्ध नहीं होती किन्तु सीखने से ही श्रांती।है। इसलिए घ्यपनी-अपनी शक्ति और परिस्थितियां का श्रत्येक की. साषा पर असाव पढ़ना और उससे उसमें मेद होना स्वायाविक हैं। .. | प्र डे. चर क झपनी मातृ-भाषा में भी किसकी कहाँ तक गति देय उसकी .- छापनी शक्ति पर श्यौर उन अवसरों पर जो उसंको झपनीः भाषा को .... सीखने के लिए मिले हैं निर्भर दै । बड़े-बड़े विद्वान _मलुष्य भी छंपनी 2 मातूसाषा के सारे शब्द-मयडार को काम में कभी नहीं -लाते । साधारण . 2 समलुष्यों का तो शब्द-भयडार बहुत थोड़ा होता है। आमीण लोगों की शब्दावलि सैकड़ों के झन्द्र ही सीमित होती दे ।. .भाषा- में वैयंक्तिक विशेषता को लानेवाला पहलता.कारण यही दे। इससे दो व्यक्तियों की . साषा में परिमाण-कत था विस्तार-कत सेद स्पष्ट है । उपयुक्त कारंग के होते. - हुए यह नहीं कहा जा सकता कि कोई भी दो मनुष्य बिलकुल एक ही . . भाषा को बोलते हैं । सा नि मि ७. हट _ स व्यक्तियों की सावा में मेद लानेवांला दूसरा कारण शब्दों का अय-मेद है | भाषा के ऊपर दिये गये लक्षण से यह स्पर्ट दै /किः भाषा हमारे भावों या विचारों को प्रकट करने का एक साधनमात्र या किवले एक वाहरी स्वरूप है । भाषा का असली या झ्यान्तरिक स्वरूप दमारे विचार ही .. हैं । इसलिए शब्दों में ऊपरी समानता के होने पर भी हो सकतीदे कि उनके 7 छर्थो में पूरी-पूरी समानता न हो । एक मनुष्य एक शब्द-से क्या समः 7 सता दे यह उसकी अपनी बुद्धि शिक्षा झादि पर निर्भर है ।. स्वतस्त्रतो ... स्याय पघ्मे भभक्ति तप सन्तोषः इत्यादि गूढाथक इ््दों के न विषय में तो यह बात प्रायः प्रसिद्ध ही हे । इन शब्दों का सर कोई प्रयोग ग ही परन्तु उनके थामिप्रायों में प्राय झ्ाकाश पाताल का. छान्तर 1 हे। ही हू श्र कि १ ही ही ः न द ः के कं भा कम दि मिन्न-मिन्न मचुष्य कट. करते हैं | मि छुष्य एक दी वात को मिन्न-सिन्न रीति से. प्रकट. करते हैं । मिन्न कवियों -की रचना की शैली तथा बड़े-बड़े वर्ताओं - के भाषणों अकार में सिन्नता होती है यदद सब कोई जानते. हैं 1 - इसका कारया उनकी विचार-पद्धति में मेद का होना ही होता है। _ . 5 पृ दर दर कै शक नि ह समिट लिन हे हू झड कणग मन कर शक पा नह रे हपन




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