आठ एकांकी नाटक | Aath Akanki Natak

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Aath Akanki Natak by डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ `) विक प्रवृत्ति के अनुसार उसके उल्लास ओर कीड़ा की दिन- य्या पुनः प्रारंभ हो जाती है| पति की बोमारी ही मे भाभी के इस परिवर्तित व्यवहार पर पद्मां को आश्चयं होता ই। किन्तु भारती को इन बातों से अचंभा नहीं होता। वह पद्मा से कहती है कि यह मन की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। पद्मा अपने आपदश को मन की भ्रवृत्ति से ऊँचा समझती हे। वह इस सिद्धान्त की पुजारिन है की पति चाहे किसी भी परिस्थिति मे. हो पत्नी अपने सारे सुखो को तिलांजलि दे कर अपने को पति मे विलीन कर दे। इस आदश का संघ होता है स्वाभाविक मनःप्रवृत्ति से । वह भवृत्ति यह है कि जब किसी असीम ओर अनन्त कष्ट को सहते-सहते ( चाहे बह अपने प्रिय के लिए ही हो ) मन 'ऊब सा जाता है, घैय्य विचलित हो जाता है, तब मन उस कष्ट के प्रति उदासीन हो कर पुनः सुख की खोज में दोड़ता है। पद्मा अपने पति की बीमारी मे अपने आदर्श का पालन साधना और तपस्या के साथ करती है। खाना-पीना, सोना, पूजा-पाठ सब का 'परित्याग कर वह पति की निरन्तर सेवा में दो साल तक लीन रहती है । उसका वेश मलिन, सुख उदास रहता है । दो वर्ष बाद जब उसका पतिः उसे श्चीनाथद्वारे जाने को कहता है तो पद्मा पति को छोड़ कर जानां नहीं चाहती । अन्त मेँ श्रीनाथज्ी के आशीर्वाद से पति के स्वस्थ होने की भावना ले वह पति की आज्ञा से जाने को उद्यत होती ह ! जाते समय उसका तपखिनी सा वेश नहीं है, “जैसा पति की बीमारी मे था। चरन्‌ वह रेशमी साड़ी, ब्लाउज और रत्न-जटित आभूषण धारण कर लेती है। अन्त में लेखक




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