विज्ञान | Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
140 MB
कुल पष्ठ :
502
श्रेणी :
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No Information available about गोपाल स्वरुप भार्गव - Gopal Swaroop Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संख्या? ]
परख करने लगे उन्हे।उस धर्म के महरतों संस्थाओं
-और सिद्धान्तोसे चिढ़ थी | इसीको विनाश करने
के लिए बह ईसाई धमके मूलेच्छेर नका ही प्रयल
फ़रने लगे ता यदि इस धार्मिक आयोजजम परलोक
का हो ध्यान रखा जाता तो इसे सूल्योच्छेदनके
` उपाय {शायद् न शिथेः जाते কিন্ত নাহার
: ग्रह एक. महत्वपूर्ण राजनीतिक संख्थाके रूप
. था ओर विशेषकर इसी कारण इसके प्रसि भीएण
_ घूणाअओंका प्राहुर्भाव हुआ | महन्त और शुज्ञांरो
गण परलोककी खांमभ्रियों पर शासन करनेके
अतिरिक्त बड़े बंड़े ज्मींदार, अधिकारी, और
राज्य प्रबन्धक খী। অদ সবি হজ घ॒गाका यह
कारण नहीं था कि समाजफ़े नये सङ्गडनम वरं
अपना स्थात पानेमे . असमर्थ था, प्रत्युत इसका
कारण यह थां कि पुराने: सामाजिक सह्ृठनमें,
'लिसकां विनाश निःश्चित-था इस संघ्याने सबसे
परवल एवं सर्वाधिक विशेषाधिकारससपन्न खान
प्रदण कर जिया था। क्वान्तिके परिणाप्रौपर क्ियार
करनेसे तथ्य विदित हो जायगा। ज्यों ज्य कान्ति
के राजनीतिक परिणाम दढ होते गये, ज्यों जप
पुरानी. राजवीतिक संस्थाओंकी पूर्णाइति होती
गयी त्यों त्वों शक्ति, विशेषाधिकार और श्रेशिर्यः
< श्रन्तके खथ साथ इस. नारितकताका भी अन्त
होता गया और धीरे. धीरे मयुष्योके हदय पर
धर्मने पुनः अपना स्थान जमा लिया।
_ यह दशा फासऊो ही नहीं थी वरन युरोपसं
शायद ही वई ईसादे खम्धदाय ऐसा हो जिसे
फ्रांसीसीक्रानिदिसे नवजीवन लास न हुआ हो | यह
सो-बना.बड़ी सारी मूल है कि जन सत्ताक समाज
धर्मके विरुद्ध ही सम्भय-है | चिरकालके अजुभवने
यही शिक्षा दी है कि धार्मिक विंश्वासका जीवन
मूल ज तारे हृदव्षेंपर अधिकार रखता है । वास्त-
অল नेको अनेक बातें जतसत्ता हे पंक्षम हैं। जो
कंतें.घार्मिक संस्वाओफे विषयत्रे कही गयी हैं
बही सामांजिक सं र्या्रके विवय भी कहीं जा
सक्ती ह । जव कान्तिने उख समदः तंककी प्रच.
२
कि
फ्रांसीसी सपाजकी वान्तिकारी तरह
१३
कित संस्थाओं और रीत्तियोंका दमन कर दिया
तब ऐसा विदित होता था कि क्रान्तिके हा
किली विशेष सामाजिक सहुठनका ही अन्त ने
होगा प्रत्युत वड् क्राशि सवः पकारकते सङ्गटनक्
हो वियाश कर डालेगी। किन्तु इसमें भी ऊपरी
तथ्य के श्रदिरिक्त कौर वास्तविक स्वाद् नही है।
फ्रॉसोखी क्रान्तिका উই प्राचीन शासत पद्धति
छरी पर्वन करवा न था दन् उसका ततो
उदेश्य हे यह था कि प्राचीन समाज संकृठनका
अन्त कर दिया जाव। इसोौसे क्राल्तिने सब प्रक्ां
स्के स्थिर अधिकारौ, मान्य प्रमादः, श्रर व्यय
दारको नष्ट कतके नये श्राचार विवार णवं, सैति
नाति प्रचलित करनेकी ठान ली । ऐसा. मांलूम
होता था कि क्रान्ति मजु्॒थोके हृदयोंसे उन सभी
भावोकी दूर कर देगो जिगपर सम्मान और
आज्ञापालतका आधार खड़ा है। सम्यति यह
क्रान्ति आवद्र ओर स्पर्धाकी वस्तु दो रही ই)
सभी शासक अपने अपने राज्य विवेषाबिकार्ों-
को मिदानेये योग देने लगे हैं। बद इस फ्रान्तिकारी
कायको अमके खाथ अपनी दूरदर्शिताफ्े कारण
ততার ই। জনক হীন অবাক डे विउ्द्ध, मध्यम
धेणीके छोन इच्च स्तावालःके विदद्ध, . किसान _
जमीदारोफे विरुद्ध उठ पड़े हैं। गैर अधिकारी
वगको अपनी रक्षा एवं स्थिरताओे लिए डदर
नीतिका शवलःवनं करना पड़ा है। फ्रसोसी
कान्तिने उनके हृद ओैमं जय श्रौर शिक्षाका एक
साथ ही समावेश कर दिया। ` - .“ `
. सभी शासन सम्बन्धो. अगवा राजनीतिक
क्रान्तियाँ किसी देश विशेषे परादुभूत हुई हैं धरर
उसी सीमाके भीतर उचपका विकास होता रहा উই).
परन्तु फ्रांसीसी क्रान्ति खौमाबद्ध कभी नहीं हुई ।
भरत्युत इसने दशोपके धरातश्से सभी पुरानी
सोमाओंकों मिटा दिया | नियम, व्यवहार, संति
नीति और भाषा आदिके भेदोंके रहते हुए भी
इस क्रान्तिने विदेशियोसे भायप प्रेमका समावेश
॥
कर दिया एवं इ.पने ही देश वन्धुक ` बीचमे `
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